5 सितंबर, 1971, जबलपुर (म.प्र) में जन्म। ढाई दशक से पत्रकारिता में सक्रीय। बीते दस बरस में दो कहानी संग्रहः आईने सपने और वसंत सेना। यूं ना होता तो क्या होता। पिछले साल आया उपन्यास दलाल की बीवी काफी चर्चित रहा। गुजरे डेढ़ दशक से लगातार फिल्म समीक्षाएं, विवेचन और अध्ययन। मुंबई में निवास। प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक अमर उजाला के मुंबई ब्यूरो प्रमुख।
नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आई एम) के साथ शांति समझौता अशांत उत्तर पूर्व के, खासकर मणिपुर के टंखुल नगा बहुल इलाके में जहां उपरोक्त गुट का आधार है, एक हिस्से में शांति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है लेकिन इसके बाद अभी बहुत-सी जटिलताएं और चुनौतियां बाकी हैं। एनएससीएन (आईएम) का जनाधार नगालैंड के पड़ाेसी राज्यों में ज्यादा होने की वजह से असम और मणिपुर के एक तबके में यह आशंका बलवती हो रही है कि उनके राज्य के नगा बहुल इलाकों की बाबत किस कीमत पर फैसला हुआ है।
श्रीलंका में 12 अगस्त से तीन टेस्ट टेस्ट मैचों की शृंखला खेलने के लिए रवाना हुई भारतीय टीम के खिलाड़ियों के साथ न तो उनकी पत्नियां गई है और न ही प्रेमिकाओं को जाने की इजाजत मिली है।
अनिल कुंबले, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वी. वी. एस. लक्ष्मण जैसे पूर्व दिग्गज खिलाडिय़ों पर भी हितों के टकराव की गाज गिर सकती है क्योंकि ये सभी पूर्व खिलाड़ी किसी-न-किसी रूप में आईपीएल फ्रेंचाइजी टीमों के अनुबंध से जुड़े हैं या फिर कंपनियों के साथ इनका करार है। इस वजह से उनकी बीसीसीआई से जुड़ी जिम्मेदारियां प्रभावित हो सकती हैं।
राष्ट्रपति भवन में चाहे और बहुत कुछ हो मगर सफाई जरा कम है। हाल ही में जारी स्वच्छता अभियान रेटिंग में राष्ट्रपति भवन पिछड़ गया है। राष्ट्रपति भवन को हैदराबाद हाउस, विज्ञान भवन और जवाहरलाल नेहरू भवन ने पछाड़ा है।
न्यूजीलैंड में भारतीय उच्चायुक्त को देश छोड़ना होगा। उनकी पत्नी पर एक कर्मचारी को प्रताड़ित करने का आरोप लगा है। मीडिया में आई खबरों में बताया गया कि उच्चायुक्त रवि थापर को औपचारिक तौर पर बुला लिया गया है और आज उनके वेलिंगटन स्थित आवास पर एक गाड़ी खड़ी हुई नजर आई।
पत्रकार से फिल्म निर्देशक बने विनोद कापड़ी की पहली फिल्म मिस टनकपुर हाजिर हो बॉक्स ऑफिस के कमाई के रिकॉर्ड तोड़ पाएगी या नहीं यह तो वक्त बताएगा, लेकिन अपनी पहली ही फिल्म में विनोद कापड़ी ने बता दिया है कि यह एक जरूरी फिल्म है।
दूरदर्शन द्वारा संस्कृत-समाचार प्रसारण की अवधि बढ़ाने के निर्णय पर कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि संस्कृत मोदी सरकार के एजेंडे में है। इस निर्णय का निहितार्थ भी आसानी से समझ में आने वाला है, इसलिए इस पर सवाल भी उठेंगे ही। इस ऐलान के बाद लोगों के जेहन में सबसे पहला सवाल तो यह है कि संस्कृत में न्यूज बुलेटिनों और समाचार-चर्चा के कार्यक्रमों का दर्शक या श्रोता वर्ग कौन है? दूसरा सवाल यह है कि देश में कितने लोग ऐसे होंगे जो वास्तव में संस्कृत माध्यमों से इन कार्यक्रमों की बाट जोह रहे हैं? ये महज शोशा है या इसकी कोई ठोस जरूरत है?