असंतोष और टकराव का लाल गलियारा बेहद लंबा है। आज राज्य के अर्द्ध सैन्य बल और प्रतिरोधी आदिवासी आमने-सामने हैं। आखिर क्यों है ऐसा? समाज विज्ञानी, लेखक और पत्रकार रामशरण जोशी इस ‘क्यों’ की पड़ताल अपनी नई पुस्तक ‘यादों का लाल गलियारा-दंतेवाड़ा’ में करते हैं।
आक्रोश और उन्माद हिंसा दे सकते हैं, न्याय नहीं, राज्यसभा में किशोर न्याय (बाल देखरेख एवं संरक्षण) विधेयक-2015 के पारित होने से यही बात फिर से साबित हुई है। उंन्मादित जनता बस 16 दिसंबर 2012 सामूहिक बलात्कार (निर्भया) के किशोर अपराधी का खून मांगने निकली थी, सरकार ने उसके दामन में देश भर के बच्चों को अपराधी बनाने का दाग भर दिया। जी हां, किशोर न्याय विधेयक का बर्बर बलात्कार और हत्यायों से कोई खास रिश्ता नहीं है। यह विधेयक किसी भी ‘जघन्य’ अपराध के आरोपी किशोरों के साथ व्यस्क अपराधियों सरीखा व्यवहार करने, उन पर वयस्क अदालतों में मुकदमा चलाने और उन्हें वयस्कों के लिए बनी जेल में भेजने का रास्ता खोलता है।
जुवेनाइल जस्टिस बिल आज राज्यसभा में पारित हो गया। नए कानून के जरिये जघन्य अपराध में नाबालिग को पुन: परिभाषित किया गया है। इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में शामिल 16 वर्ष से 18 वर्ष की आयु के नाबालिगों को भी वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाएगा।
निर्भया कांड के नाबालिग दोषी की रिहाई के बाद सरकार पर किशोर न्याय संशोधन विधेयक को संसद में पारित कराने का दबाव बढ़ गया है। इस विधेयक में जघन्य अपराधों में शामिल 16 साल से ऊपर के किशोरों को व्यस्कों जैसी सजा देने का प्रावधान है। इस विधेयक पर आज राज्यसभा में चर्चा और इसके पास होने की उम्मीद की जा रही है।
राज्यसभा में आज विभिन्न दलों के सदस्यों ने किशोर न्याय कानून में संशोधन के प्रावधान वाले विधेयक को जल्दी पारित किए जाने पर बल दिया। इसके कुछ देर पहले ही उच्चतम न्यायालय ने निर्भया मामले में नाबालिग दोषी की रिहाई के खिलाफ एक याचिका को खारिज कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने पांच साल से युद्ध से गुजर रहे सीरिया में सरकार और विद्रोहियों के बीच बातचीत के जरिये शांति प्रक्रिया का अनुमोदन करने वाले एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति के साथ स्वीकार कर लिया है। लेकिन यह मसौदा सीरिया में राजनीतिक हस्तांतरण में राष्ट्रपति बशर असद की भूमिका पर कुछ नहीं कहता।
सोलह दिसंबर, 2012 की सामूहिक बलात्कार की दर्दनाक घटना के मामले में दोषी किशोर की रविवार को रिहाई का रास्ता आज उस समय साफ हो गया जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप से इंकार करते हुए कहा कि कानून के वर्तमान प्रावधानों के तहत उसे रिहा होने से नहीं रोका जा सकता। अगर उच्चतम न्यायालय रोक नहीं लगाता है तो अब 20 साल के हो चुके दोषी के 20 दिसंबर को तीन साल की सजा पूरी करने के बाद सुधार गृह से बाहर आने की उम्मीद है।
मंगलवार को दिल्ली सचिवालय स्थित दिल्ली सरकार के कार्यालय में सीबीआई के छापे पर देश में राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया है। सीबीआई छापे पर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीबीआई की कार्रवाई को एक अघोषित आपातकाल करार देते हुए कहा कि केंद्र बदले की भावना से उनके खिलाफ इस तरह की कार्रवाई कर रहा है।