भेदिया कारोबार पर अंकुश के लिए नियमों का नया सेट आज से प्रभावी हो गया है। नए नियमों के तहत किसी सूचीबद्ध कंपनी में उसके प्रवर्तकों, महत्वपूर्ण प्रबंधन स्तर के कर्मियों, उनके रिश्तेदारों और सभी संबद्ध लोगों द्वारा शेयरों के अवैध लेन-देन पर कड़ी दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
बड़ी-बड़ी उम्मीदों और वादों के साथ केंद्र की सत्ता में आई नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपना एक साल पूरा करने जा रही है। इस मौके पर सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस एक साल के दौरान अपने वादों और नारों पर खरे उतर पाए? इस एक साल में उनका रिपोर्ट कार्ड कैसा रहा? अगर आर्थिक नजरिये से देखा जाए तो मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड बी ग्रेड का कहा जाएगा।
सिर्फ यह कहना गलत होगा कि मोदी सरकार के एक साल में उम्मीद से कम काम करने के कारण ही शेयर बाजार लुढ़कता जा रहा है। पिछले कुछ दिनों के दौरान सेंसेक्स और निफ्टी में 11 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है और निवेशकों को भारतीय बाजार के मुकाबले चीनी बाजार ज्यादा आकर्षक लग रहा है।
बंद होने की चुनौती से जुझ रही ग्रीनपीस इंडिया के पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिये सिर्फ एक महीना है। संस्था के पास अपने कर्मचारियों के वेतन और अन्य खर्चों के लिये सिर्फ महीने भर का पैसा बचा है। गृह मंत्रालय की कार्रवाई को ‘चुपके से गला घोंटने’ जैसा बताते हुए ग्रीनपीस इंडिया ने मंत्रालय को चुनौती दी है कि वो मनमाने तरीके से दंड लगाना बंद करे और इस बात को स्वीकार करे कि वो ग्रीनपीस इंडिया को उसके सफल आंदोलनों की वजह से बंद करना चाह रहा है।
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने और कोरपोरेट को करों में भारी छूट देने वाली मोदी सरकार की नीतियां कामयाब नहीं होंगी क्योंकि इससे उत्पादन क्षमता पैदा नहीं होगी और लोगों के पास क्रय शक्ति नहीं है।
कर विशेषज्ञों ने कहा है कि वित्त मंत्री अरूण जेटली की विदेशी कंपनियों की कुछ आय पर मैट में छूट की घोषणा से विदेशी कंपनियों को राहत जरूर मिली है लेकिन सरकार को पिछले बकाये के लिए कर संधि लाभों के बारे में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
केंद्र सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं के बीच खाई बढ़ती जा रही है। हाल ही में सरकार ने विदेशी चंदा हासिल कर रहे गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर कड़ी कार्रवाई करते हुए लगभग 9,000 एनजीओ के लाइसेंस रद्द कर दिए।
भूकंप ने नेपाल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ समझे जाने वाले एवरेस्ट की कमर पर चोट की। ठीक एक साल बाद एवरेस्ट को फिर से आपदा ने घेरा। पिछली बार की ही तरह इस बार भी एवरेस्ट की चढ़ाई के चरम सीजन के दौरान आई आपदा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को गिरफ्त में लेने वाली अब तक की सबसे भयानक आपदा हो गई है।
बेतरतीब निर्माण ने बढ़ाया विनाश का दायरा, सही नियोजन से 90 फीसदी नुकसान रोका जा सकता था, जापान से कुछ भी नहीं सीखा, आने वाले दिनों में बड़े भकंपों की आशंका, धरती की चट्टानों में बढ़ रही ऊर्जा की हलचल