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राजनीति की नर्सरी है छात्र राजनीति

राजनीति की नर्सरी है छात्र राजनीति

समाजवादी छात्र सभा केे निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह यादव का मानना है कि छात्र राजनीति से ही राजनीति की शुरुआत होती है। अगर राजनीति के क्षेत्र में युवा जाना चाहते हैं तो छात्र राजनीति से इसकी शुरुआत करनी चाहिए। छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत करने वाले सुनील आज के युवाओं को राजनीति से जुड़ने का आह्वान भी करते हैं। लोकतंत्र में छात्र राजनीति को अहम मानने वाले सुनील सिंह यादव से आउटलुक ने बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश-
कोहली को पत्रकार से झगड़ा खत्म करने की सलाह

कोहली को पत्रकार से झगड़ा खत्म करने की सलाह

विराट कोहली के एक पत्रकार को अपशब्द कहने की घटना पर पूर्व भारतीय क्रिकेटरों सुनील गावस्कर और वीवीएस लक्ष्मण ने गुरुवार इस स्टार बल्लेबाज से संबंधित मीडियाकर्मी के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से मामला निपटाने की अपील की।
चुनाव के जरिए छात्रों को जोडऩे की पहल

चुनाव के जरिए छात्रों को जोडऩे की पहल

उत्तर प्रदेश में एक बार फिर छात्र राजनीति को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार ने कमर कस ली है। प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव कराने की तैयारी शुरू कर दी है।
बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

बर्बर प्रदेश में कितनी उम्मीद

राष्‍ट्र¬भाषा होने का दावा करने वाली हिंदी के मीडिया से तो इसी राष्‍ट्र का हिस्सा माना जाने वाला मणिपुर अमूमन गायब ही होता है और उत्तर पूर्व में असम अगर यदा-कदा चर्चा में आता भी है तो बिहारियों, झारखंडियों पर उग्रवादी हमले के कारण या अरूणाचल प्रदेश की चर्चा होती है तो चीनी दावेदारी के हंगामें के कारण। हिंदी के एक्टिविस्ट संपादक प्रभाष जोशी के निधन के बाद की चर्चा में यह प्रसंग जरूर आया कि वह 5 नवंबर को नागरिकों की एक टीम के साथ मणिपुर जाना चाहते थे लेकिन यह टीम मणिपुर की जिन उपरोक्त परिस्थितियों के बारे में एक तथ्यान्वेषण मिशन पर वहां जा रही थी उसका जिक्र ओझल ही रहा। और जिस ऐतिहासिक अवसर पर यह टीम मणिपुर जा रही थी उसका जिक्र तो भला कितना होता? यह ऐतिहासिक अवसर था 37 वर्षीय इरोम शर्मिला के आमरण अनशन के दसवें वर्ष में प्रवेश का। गांधी और नेल्सन मंडेला की जीवनी सिरहाने रखे बंदी परिस्थितियों में इंफाल के एक अस्पताल में अनशनरत अहिंसक वीरांगना के नाक में टयूब के जरिये जबरन तरल भोजन देकर सरकार जिंदा रखे हुए है। अपढ़ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पिता और अपढ़ माता की नौवीं संतान शर्मिला सन 2000 में असम राइफल्स के जवानों पर बागियों की बमबारी के जवाब में सशस्त्र बलों द्वारा एक बस स्टैंड पर 10 निर्दोष नागरिकों को भूने जाने की खबरें अखबारों में पढक़र और तस्वीरें देखकर तथा उन सुरक्षाकर्मियों को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के कारण सजा की कोई संभावना न जानकर इतना विचलित हुई कि उन्होंने इस तानाशाही कानून के खिलाफ आमरण अनशन का फैसला ले लिया।
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