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सपा का आंतरिक संकट वंशवादी राजनीति का परिणाम : वेंकैया नायडू

सपा का आंतरिक संकट वंशवादी राजनीति का परिणाम : वेंकैया नायडू

केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने आज कहा कि उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ समाजवादी पार्टी का पारिवारिक कलह वंशवाद की राजनीति का परिणाम है और भाजपा की इस पर टिप्पणी करने में कोई रूचि नहीं है। वेंकैया नायडू ने सीआईआई के एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा, मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी है। यह आंतरिक समस्या है। जैसा कि मैं हमेशा से कहता रहा हूं कि लोकतंत्र में वंशवाद घातक होता है लेकिन कुछ लोगों के लिए रूचिकर भी होता है। हम इसका परिणाम भी देख रहे हैं।
यूपी चुनाव : प्रगतिशील पंचायत में भाजपा मुस्लिमों की समस्‍याएं सुनेगी

यूपी चुनाव : प्रगतिशील पंचायत में भाजपा मुस्लिमों की समस्‍याएं सुनेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय को पार्टी की तरफ आकर्षित करने के लिए प्रगतिशील पंचायत के आयोजन का फैसला किया है। जिसमें मुस्लिमों के उत्थान और उन्हें विकास की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे। मोदी सरकार 'प्रगतिशील पंचायत' के नाम से देशभर में आयोजन करने के साथ साथ मुस्लिमों की समस्या का समाधान तुरंत ढूंढने की कोशिश भी करेगी।
गाय के चमड़े की कमी : क्रिकेट की गेंद के दाम 400 से बढ़कर हुए 800 रुपए

गाय के चमड़े की कमी : क्रिकेट की गेंद के दाम 400 से बढ़कर हुए 800 रुपए

बीफ यानी गाय के मांंस पर प्रतिबंध और चमड़े के परिवहन में आ रही दिक्‍कत के बाद क्रिकेट की गेंद के दामों में दोगुनी बढ़ोतरी हो गई है। जो गेंद एक साल पहले 400 रुपए की मिलती थी वहीं अब 800 रुपए की मिल रही है। उत्‍तर प्रदेश के कई इलाकों में बीफ पर बैन है। इसके अलावा गाय के चमड़ेे का परिवहन करने में अब ट्रांसपोर्टर रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इस वजह से गाय के चमड़े की किल्लत हो गई है। गाय के चमड़े से क्रिकेट की लाल गेंद बनाई जाती है। एक गाय के चमड़े से करीब तीन दर्जन गेंद तैयार की जा सकती हैं।
कुपोषण से मुक्ति एक सपना बन गया है

कुपोषण से मुक्ति एक सपना बन गया है

कुपोषण एक ऐसी बीमारी जो कि बच्चों के विकास में बाधक ही नहीं बल्कि समाज के लिए चिंता का विषय है। कुपोषण से मुक्ति की सरकार लाख कोशिशें कर ले लेकिन इससे मुक्ति एक सपना बन गया है। राष्ट्रीय प्रतिष्ठान और सेव द चिल्ड्रेन के लिए किए जा रहे शोध के दौरान पाया गया कि सरकारी आंकड़े कुपोषण को लेकर कुछ और स्थिति बताते हैं जबकि जमीनी हकीकत कुछ और होती है।
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