रविंद्र जडेजा ने भारत के वेस्टइंडीज बोर्ड अध्यक्ष एकादश के खिलाफ दूसरे मैच के दूसरे दिन शानदार फार्म जारी रखते हुए तीन विकेट चटकाने के बाद अर्धशतकीय पारी खेली।
अपने साथी खिलाडि़यों की तरह बायें हाथ के स्पिनर रविंद्र जडेजा को भी बखूबी पता है कि विदेश में जीते बगैर भारत में मिली कामयाबी के उतने मायने नहीं हैं और वेस्टइंडीज के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की सीरीज में भारतीय टीम का लक्ष्य यही है।
रविंद्र जडेजा, रविचंद्रन अश्विन और अमित मिश्रा की स्पिन तिकड़ी के दम पर भारत ने दूसरे और आखिरी अभ्यास मैच के पहले दिन वेस्टइंडीज बोर्ड अध्यक्ष एकादश को सिर्फ 180 रन पर समेट दिया।
कभी अति सक्रियता और कभी संयम खोकर लक्ष्मण रेखा पार कर जाना। स्मृति ईरानी की तरह इसी कारण संघ की नाराजगी के चलते जयंत सिन्हा का भी विभाग बदला। उनके मामले में एक अतिरिक्त तथ्य यह भी रहा कि उन्होंने कॉरपोरेट घरानों की लॉबी को नाराज कर रखा था। उन्हें अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण मंत्रालय नागर विमानन मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाकर भेजा गया। हालांकि, स्मृति ईरानी के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कपड़ा मंत्रालय में बदली की चर्चा के बीच जयंत सिन्हा का विभाग बदले जाने की बात दब गई।
रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से केरल के कोचूवेली और महाराष्ट्र के पुणे को जोड़ने वाली दो नई एक्सप्रेस ट्रेनों को कल 28 जून को हरी झंडी दिखाएंगे।
पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने एनएसजी की सदस्यता पाने के लिए देश के पुरजोर प्रयासों पर नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए रविवार को कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं थी और सदस्यता पाकर भारत को कोई फायदा नहीं होगा, नुकसान ही होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार में बैठे लोग उसे हर दिन गुमराह कर रहे हैं।
1937 में जब पहली बार कांग्रेस-लीग के समझौते के बाद उत्तर प्रदेश में पहली कांग्रेस सरकार चुनकर आई तो नेहरू जी मंत्रिमंडल में लीग को स्थान देने के लिए तैयार नहीं हुए थे। जिसके फलस्वरूप देश के विभाजन की नींव रखी गई थी। मेरा उद्देश्य इस सवाल को उठाना नहीं है। उससे कई और सवाल जुड़े हैं। मैं यहां संसदीय सचिव (पार्लियामेंन्ट्री सेक्रेट्री) के पद के इतिहास के बारे में बात करना चाहता हूं। यह पद ब्रिटिश सरकार की परंपरा का हिस्सा है। मैंने कहीं पढ़ा था चर्चिल भी शायद पहले संसदीय सचिव ही हुए थे। सन 1937 में जब पंडित गोविंद वल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी तो वह मुख्यमंत्री बने थे और विजय लक्ष्मी पंडित मंत्री बनी थीं। यदि संसद सचिवों की बात की जाए तो चौधरी चरण सिंह (जो प्रधानमंत्री बने), चंद्रभानु गुप्त (चार बार मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस के कद्दावर नेता थे), आचार्य जुगल किशोर (1947 में आजादी के वक्त कांग्रेस के जनरल सेक्रेट्रियों में थे) समेत कई संसदीय सचिव थे। उसके बाद भी संसदीय सचिव की परंपरा मंत्रिमंडल का अंग रही। मैं स्मृति से लिख रहा हूं। केंद्र में भी यह पद था। प्रदेश में कई बड़े नेताओं ने संसदीय सचिव के पद से अपना करिअर आरंभ किया था जिनमें बाबू बनारसी दास (मुख्यमंत्री रहे), हेमवतीनंदन बहुगुणा (पूर्व मुख्यमंत्री, कैलाश प्रकाश पूर्व. शिक्षा मंत्री) आदि सम्मिलित हैं।