1992 के बाद वित्तीय वर्ष 2016-17 में कार्पोरेट निवेश की गति सबसे धीमी हो गई है। विश्लेषकों का कहना है कि अर्थव्यवस्था में खराब मांग और नए परियोजनाओं को ऋण देने के लिए बैंकों की अनिच्छा से यह गिरावट आई है।
भारत की आर्थिक वृद्धि दर की धीमी रफ्तार की वजह अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल क्रुगमैन ने मोदी सरकार द्वारा अचानक की गई नोटबंदी, आरबीआई की पॉलिसी और रुपये की मजबूती को बताया है।
एक ओर जहां किसान कृषि उत्पादों का उचित दाम नहीं मिल पाने की चिंताएं व्यक्त कर रहे हैं, वहीं अब इसकी बानगी आंकड़ों में भी दिखाई देने लगीं हैं। मई माह में महंगाई दर 3.85 फीसदी के मुकाबले घटकर 2.17 फीसदी हो गई है। इस दौरान खाद्य एवं कृषि उत्पादों की महंगाई दर में भारी कमी दर्ज की गई है।
देश के विकास में अड़ंगा बना नोटबंदी को लेकर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मोदी सरकार पर करारा हमला बोला है। चिदंबरम ने केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़े के हवाले से कहा कि देश की अर्थव्यवस्था की धीमी विकास दर को लेकर की गई उनकी भविष्यवाणी सही थी, जिसे नोटबंदी ने और भी बदतर बना दी।
अर्थव्यवस्था के ताजा आंकड़ों पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि पिछले तीन सालों में लगातार अर्थव्यवस्था बदलती रही है लेकिन मौजूदा वित्तीय वर्ष में विकास दर साढे़ सात फीसदी रहेगी तथा अागामी कुछ सालों में विकास दर आठ फीसदी तक पहुंच जाएगी।
नीति आयोग ने कहा है कि देश के समक्ष बेरोजगारी के मुकाबले सबसे बड़ी समस्या अर्ध बेरोजगारी है। आयोग ने बताया कि जिस काम को एक व्यक्ति कर सकता है, उसे प्राय: दो या उससे अधिक कर्मचारी करते हैं।