समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को जदयू अध्यक्ष शरद यादव और राजद अध्यक्ष लालू यादव भी नहीं मना पाए। लालू और शरद ने मुलायम से मुलाकात के बाद कहा कि अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है।
जनता परिवार को एकजुट करने की मुहिम बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही खत्म हो गई। समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड से नाता तोड़ते हुए बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ने की तैयारी कर ली है। पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव ने इसकी घोषणा भी कर दी।
जेल में बंद जनता दल यूनाइटेड के बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। सिंह ने इस्तीफा देने का कोई कारण नहीं बताया। लेकिन सूत्र बताते हैं कि राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव द्वारा बार-बार की जा रही आलोचना अनंत के इस्तीफे कारण बना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले अनंत को मोकामा क्षेत्र में छोटे सरकार के नाम से भी जाना जाता है।
आम आदमी पार्टी ने शनिवार को एक बड़ा फैसला करते हुए अपने दो सांसदों को निलंबित कर दिया। पंजाब से आने वाले इन दोनों सांसदों को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में निलंबित किया गया है। लेकिन यह भी सच है कि इन दोनों सांसदों को योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का करीबी माना जाता था। और यही कारण है कि पार्टी में काफी दिनों से इन पर कार्रवाई की चर्चा चल रही थी।
बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू यादव ने समाजवादी पार्टी के दो सीटें और छोड़ दी। अब सपा बिहार में पांच सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जनता दल यूनाइटेड, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन ने 243 में से 240 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की जबकि तीन सीटें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ी गई थी।
2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म मुजफ्फरनगर बाकी है काफी चर्चा में रही है। यह फिल्म दंगे के दौरान के हालात और वहां के स्थानीय लोगों की भावनाओं का बखूबी इजहार करती है। फिल्म के जरिये उन तत्वों की तरफ इशारा किया गया है जो मुजफ्फरनगर के हालात के जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि इस फिल्म का प्रदर्शन कई संगठनों के गले नहीं उतर रहा है। कई बार फिल्म के प्रदर्शन को बलपूर्वक रोकने की कोशिश की गई। ऐसे ही दमनकारी आक्रमणों के प्रतिरोध में फिल्म की टीम और अन्य कई संगठनों ने मिलकर एक ही दिन पूरे देश में फिल्म का प्रदर्शन किया।
1990 में जब प्रधानमंत्री विश्वनाथ सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशाें को लागू करने का कदम उठाया तो उस समय पूरी सियासत ही गरमा गई। जगह-जगह वीपी सिंह के पुतले फूकें जा रहे थे और उनकी सरकार भी गिरा दी गई। पच्चीस साल बाद भी मंडल आयोग की सिफारिशें पूरी तरह से लागू नहीं हो पाईं। मंडल आयोग की रिपोर्ट में 13 अनुशंसाएं की गई थीं लेकिन दो ही अनुशंसाएं लागू हो पाईं।