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राजस्थान में दलित क्यों असुरक्षित

राजस्थान में दलित क्यों असुरक्षित

राजस्‍थान में पिछले डेढ़-दो साल में दलित और सामाजिक तौर पर उपेक्षित वर्गों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले छह माह में दलित अत्याचारों की लहर सी आ गई है।
नक्‍सलियों से भिड़ेगा नया सलवा जुडूम: छवींद्र कर्मा

नक्‍सलियों से भिड़ेगा नया सलवा जुडूम: छवींद्र कर्मा

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सरकारी समर्थन से आदिवासियों का हथियारबंद संघर्ष ‘सलवा जूडूम’ भले ही सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद बंद हो गया हो मगर इस अभियान की परिकल्पना और शुरुआत करने वाले कांग्रेसी नेता दिवंगत महेंद्र कर्मा के बेटे छबिंद्र कर्मा इस अभियान को फिर शुरू करने की तैयारी में हैं।
‘कनहर’ पर कहरः पुलिस की गोली से छलनी आदिवासी

‘कनहर’ पर कहरः पुलिस की गोली से छलनी आदिवासी

सोनभद्र में 38 वर्षों से लंबित कनहर सिंचाई परियोजना को लेकर डूब क्षेत्र के ग्रामीणों और जिला प्रशासन में खूनी संघर्ष। प्रशासन ने की परियोजना स्थल की नाकाबंदी। धरनारत ग्रामीणों पर हुई गोलीबारी की जांच करने पहुंचे स्वतंत्र जांच दल को परियोजना निर्माण समर्थकों ने दो घंटे तक बनाया बंधक।
राजस्थान में लगातार ईसाई समुदाय पर हमले

राजस्थान में लगातार ईसाई समुदाय पर हमले

देशभर में ईसाईयों के खिलाफ हो रहे हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। इसी कड़ी में राजस्थान के आदिवासी इलाकों में हर दिन ईसाईयों के खिलाफ कुछ न कुछ घटनाएं सामने आ रही हैं। नागरिक अधिकार संगठन पीयूसीएल की हाल ही में आई रिर्पोट के अनुसार उदयपुर जिले मे ईसाईयों के खिलाफ गंभीर मामले सामने आए हैं। इन्हें इनके पूजा करने के संवैधानिक अधिकार तक से वंचित किया जा रहा है। आदिवासी ईसाईयों को भयभीत किया जा रहा है।
मेरे शौचालय हैं कहां, कोई तो बताए ?

मेरे शौचालय हैं कहां, कोई तो बताए ?

देश भर में जोर-शोर से चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के बीच मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के बाढ़ गांव के 45 परिवार सरकार से पूछ रहे हैं कि मेरे शौचालय कहां है? निर्मल भारत अभियान के वेबसाइट पर उनके घरों में शौचालय बन चुके हैं, पर वे सभी आज भी खुले में शौच जाने के मजबूर हैं। उनके घरों में शौचालय ही नहीं है। वे अपने गायब शौचालय के लिए लगातार आवेदन दे रहे हैं, पर उनकी सुनवाई ही नहीं हो रही है।
बेदखल आदिवासियों का लुप्त होता भोजन

बेदखल आदिवासियों का लुप्त होता भोजन

धीरे-धीरे आदिवासी भोजन खत्म होने की कगार पर पहुंच रहा है। परंपरागत आदिवासी भोजन न मिलनेकी वजह से 54 फीसदी आदिवासी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। यूनिसेफ और आदिवासी मामलों के मंत्रालय की संयुक्त पड़ताल में सामने आया है कि इसकी मुख्य वजह जंगल संबंधी नई नीतियां हैं, जिनके चलते आदिवासियों को उनके परंपरागत एवं पोषक भोजन से दूर कर दिया गया।
जेएनयू में आदिवासी साहित्य की गूंज

जेएनयू में आदिवासी साहित्य की गूंज

भारतीय साहित्य में आजकल एक नई धारा चर्चा में है। आदिवासी साहित्य नाम की इस धारा के लेखक दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में जुटे और उन्होंने आदिवासी जीवन से जुड़े मुद्दों को साहित्य में उठाने की वकालत की।
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