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कुम्भ मेले में हुए घोटाले की जांच की सिफारिश

कुम्भ मेले में हुए घोटाले की जांच की सिफारिश

उत्तराखंड के सूचना आयुक्त ने 2010 में हरिद्वार में आयोजित कुम्भ मेले के दौरान कथित तौर पर 180 करोड़ रूपये की वित्तीय अनियमितता के आरोपों की सीबीआइ से जांच कराने की मंगवार को मुख्य सचिव से सिफारिश की। उस समय राज्य में भाजपा सरकार थी।
तंग करने वाली मुकदमेबाजी के विरोध में आर.टी.आई. कार्यकर्ता

तंग करने वाली मुकदमेबाजी के विरोध में आर.टी.आई. कार्यकर्ता

मध्यप्रदेश में पिछले 8-10 सालों में कई मंत्रियों, विधायकों एवं बड़े अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय में भ्रष्टाचार, अनियमितता और अन्य मामले चल रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ पहले भी डंपर मामला चल चुका है और अब उन पर व्यापमं घोटाले में उनकी संलिप्तता का आरोप विपक्षी दलों सहित सामाजिक कार्यकर्ता लगा रहे हैं।
सीईसी : आदर्श आचार संहिता का सख्ती से कार्यान्वयन हो

सीईसी : आदर्श आचार संहिता का सख्ती से कार्यान्वयन हो

चुनाव आयोग ने राज्यों में एकसमान तरीके से आदर्श आचार संहिता लागू करने के अभाव पर मंगवार को खेद प्रकट किया और कहा कि नियमों को लागू करने और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्यवाई में अधिक आक्रामक होने की आवश्यकता है।
एफएम पर समाचार देने की तैयारी

एफएम पर समाचार देने की तैयारी

भारत सरकार एफएम रेडियो पर समाचार प्रसारित करने की इजाजत देने पर विचार कर रही है। सरकार का कहना है कि वह निजी एफएम रेडियो पर कुछ नियमों के साथ समसामयिक समाचार प्रसारित करने की अनुमति देने के प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार है।
जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

जवाबदेही के जुए से कतराती नौकरशाही

सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन पर अभी चार अध्ययन आए हैं। दो गैर सरकारी, परिवर्तन और सूचना के जनाधिकार पर राष्‍ट्रीय अभियान द्वारा, और दो सरकारी, केंद्रीय सूचना आयोग की कमेटी और स्वयं भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय द्वारा। सभी की रिपोर्ट के अनुसार सूचना का अधिकार सक्षमता से लागू करने में मुख्य बाधा अपर्याप्त क्रियान्वयन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण का अभाव और खराब दस्तावेज प्रबंधन है। किसी ने फाइल देखने की नोटिंग की मांगों और खिझाऊ तथा तुच्छ आवेदनों के कारण नहीं माना है। फिर भी कार्मिक मंत्रालय नौकरशाही के दबाव में इनसे संबंधित लाना चाहता है तो उसकी मंशा पर शक होता है वही कार्मिक मंत्रालय जिसका अपना अध्ययन बताता है कि अभी देश के सिर्फ 15 प्रतिशत लोगों को सूचना के अधिकार के कानून की जानकारी है और 85 प्रतिशत लोगों को नहीं। यानी नौकरशाही अभी भी सिर्फ 15 प्रतिशत भारतीयों के प्रति जवाबदेह होने से भी कतरा रही है। और परिवर्तन की रिपोर्ट के अनुसार इन 15 प्रतिशत में सिर्फ एक-चौथाई यानी 27 फीसदी ही संतोषप्रद सूचना हासिल कर पाते हैं।
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