इस अंक को तैयार करने में जो पहलू सबसे खास बनकर उभरा, वह है हिंदी सिनेमा में उन हजारों कलाकारों का योगदान जिनकी चर्चा शायद ही होती है। उनमें अधिकतर गुमनाम ही रह गए। हमारा यह अंक उन्हीं कलाकारों को समर्पित है
आजादी के बाद बीते साढ़े सात दशक के दौरान हिंदी सिनेमा देश के राजनीतिक-सामाजिक सफर का हमकदम रहा है, उसकी दास्तां में इस देश का अक्स दिखता है, इतिहास, उत्थान-पतन और तकनीक से हासिल सहूलियतों पर एक नजर