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Search Result : "अरुण नेहरू"

बजट: क्या सस्ता-क्या महंगा

बजट: क्या सस्ता-क्या महंगा

धूम्रपान व अन्य तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल अब महंगा होगा। वहीं सेवा कर की दरों में बढ़ोतरी से कई सुविधाएं मसलन होटल में खाना, हवाई यात्रा या बिलों का भुगतान महंगा हो जाएगा।
बजट : वृद्धि की दौड़ का आर्थिक सर्वेक्षण

बजट : वृद्धि की दौड़ का आर्थिक सर्वेक्षण

आम बजट से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 पेश किया। सर्वेक्षण में अगले वित्त वर्ष में 8.1 से 8.5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि रहने का अनुमान लगाते हुये बड़े आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया है।
भूमि अधिग्रहण पर संसद में हंगामा

भूमि अधिग्रहण पर संसद में हंगामा

संसद के बजट सत्र में भूमि अधिग्रहण सहित कई मुद्दों को लेकर विपक्ष का हंगामा जारी है। विपक्षी नेताओं ने भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में सरकार पर निशाना साधा। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि भूमि अधिग्रहण बिल किसानों के विरोध में है।
काले धन पर घोषणा करेंगे जेटली?

काले धन पर घोषणा करेंगे जेटली?

लोकसभा चुनाव के दौरान जमकर काले धन का मुद्दा उठाने वाली भारतीय जनता पार्टी भले ही चुनाव के बाद एक पैसे का काला धन वापस लाने में कामयाब न हुई हो मगर माना जा रहा है कि देश और विदेश में जमा किए गए काले धन की समस्या से निबटन के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की गई कुछ सिफारिशों के आधार पर बजट में नीतिगत उपायों की घोषणा कर सकते हैं।
हार के लिए नेतृत्व जिम्मेवार - अरुण यादव

हार के लिए नेतृत्व जिम्मेवार - अरुण यादव

पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अरुण यादव दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के लिए पार्टी के नेताओं को ही जिम्मेवार ठहराते हैं।
उम्मीदे धरी रह गई

उम्मीदे धरी रह गई

भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित दीपावली मिलन समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल पूछने की मीडियाकर्मियों की हसरतें पूरी नहीं हो पाईं।
इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

इंसाफ की तलाश और हिंसा का चक्र

राजधानी के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर नागरिकों की एक अनुसंधान टीम के साथ घोर मोआवादी प्रभाव वाले एक जिले में गए जहां उनके एक पूर्व छात्र पुलिस अधीक्षक हैं। पुलिस अधिकारी की अपने पूर्व शिक्षक से मुलाकात का यह गर्वीला क्षण था, उन्होंने अपने गुरु के पांव छुए और उनके साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। नागरिक अनुसंधान टीम ने तब तक प्रशासन, पुलिस और सरकार समर्थित नक्सल विरोधी सशस्त्र निजी सेना का पक्ष ले लिया था इसलिए प्रोफेसर ने माओवादियों का पक्ष लेने के लिए नदी पार जाने की बात कही। इस पर शिष्य पुलिस अधीक्षक तपाक से बोले, सर, आप उस पार गए कि दुश्मन की तरफ होंगे और हमारी गोली खा सकते हैं। मैंने जानबूझकर दोनों लोगों का नाम छिपाया है ताकि एक निजी गुफ्तगू दोनों के लिए सार्वजनिक झेंप की वजह न बन जाए। लेकिन उनकी बातचीत से प्रशासन की ताजा मानसिकता पता चलती है: कि अब नक्सलवादियों के साथ निबटने में बीच की कोई जनतांत्रिक जमीन नहीं बची है। न सिविल हस्तक्षेप की कोई पहल, जैसे जयप्रकाश नारायण ने 1970 के दशक में बिहार के मुसहरी में की थी। अब प्रतिनिधि शासन और माओवादियों के बीच बस मैदान-ए-जंग है।
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