अमिताभ बच्चन कल शाम इंडिया हाउस में समारोह के औपचारिक उद्घाटन के लिए मिस्र में भारत के राजदूत नवदीप सूरी द्वारा आयोजित विशेष भोज में शामिल हुए। यह समारोह 17 अप्रैल तक चलेगा।
मुझे एक बूढ़ा आदमी एक बरामदे में बैठा दिखाई देता है। लेकिन चेहरा उसका अंधेरे में है और आंखें उसने अपनी बंद कर रखी हैं। उससे कुछ पूछना ठीक नहीं लगता। मैं आगे बढ़ जाता हूं। अब मैं एक छत की फर्श पर खड़ा हूं। मैं अब इस छत पर कब तक टंगा रहूंगा।
यह बात ठीक थी कि विशम्भर प्रसाद ने शराब से तौबा कर ली थी, लेकिन उसका एक-एक जानने वाला तो इस बात से परिचित था नहीं। अक्सर देर रात को विशम्भर प्रसाद के किसी न किसी जानने वाले का फोन, तो कभी दरवाजा भड़ाभड़ बजने लगता।
आजकल फैशन हो गया है कि किसी विमर्श पर ध्यान लगाया जाए तो ही साहित्य 'बिकाऊ’ हो सकता है। लमही का नया अंक स्त्री विमर्श से ज्यादा उन्हें समझने और उनकी भावनाओं को सामने लाने का अंक है।
चलते हुए उन्होंने कुर्सी को बड़े नेह से देखा जैसे कह रहे हों, '40 साल तक तूने मुझे बहुत संभाला। अब मैं मुक्त करता हूं तुझे अपनी कामनाओं से।’ एक घंटे बाद जब वह दोबारा कॉलेज पहुंचे तो इस बार कॉलेज गुलजार था।
मैं चाहता था कि सब कुछ ऐसा ही रहा आए। वह जानती थी कि कुछ भी ऐसा नहीं रहेगा। वह गीले कैनवास पर अधसूखे रंगों को धीरे से छूती, …कहती, ‘कितने अच्छे हैं, …पर धुंधला जाएंगे।’ मैं आंखें बंद कर कहता, ‘मैं और बना दूंगा, इनसे भी अच्छे, और चटक, और गहरे।’
देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसी घटनायें कम ही सुनने को मिलती हैं कि एक गीत किसी सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दे और सरकार को उस गीत और गीतकार के खिलाफ पूरी ताकत झोंकनी पड़ी हो। और आख़िरकार वह गीत ही सरकार का विदाई गीत बन गया हो।
उनकी मुंदी आंखों के नीचे अंधेरे की गाढ़ी परत बिछी हुई थी। सरकारी अस्पताल के उस आईसीयू में गुजरे जमाने के मशहूर गवैए उस्ताद इकराम मुहम्मद खान को उनकी जिंदगी आखरी सलामी देने की तैयारी कर रही थी।