जिंदगी के तमाम उतार-चढ़ाव के बीच इंसान कई बार आत्म मूल्यांकन के दौर से गुजरता है। इस मूल्यांकन में ‘आत्म’ के साथ जीवन की अनेक परिस्थितियों, घटनाओं के साथ चलती कई जिंदगियों और उनसे जुड़े मनुष्यों की परख भी होती है। इस पूरी प्रक्रिया में अतीत से वर्तमान और वर्तमान से अतीत के रास्ते की आवाजाही शामिल होती है। आवाजाही का यह सिलसिला बदले हुए समय के अनेक परिवर्तनों का आधार बनता है।
अडाणी की 21.7 अरब डालर की कोयला खान परियोजना के लिए पब्लिक फंडिंग नहीं होगी। यह बात आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कॉम टर्नबुल ने कही। उन्होंने प्रदर्शनकारियों को आश्वस्त करना चाहा कि वह खुद भी उनकी तरह ही जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेते हैं। इन प्रदर्शनकारियों ने मछली जैसे दिखने वाले कपड़े पहने हुए थे।
एक तरफ भारत में लगातार सूखे की खबर सूर्खियों में है तो दूसरी तरफ ग्रीनपीस को मिली जानकारी के अनुसार भारत सरकार उन नीतियों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है, जिन्हें देश के प्राचीन जंगलों, वन्यजीव और जल स्रोतों को बचाने के लिये बनाया गया है।
भारतीय जनता पार्टी ने कोयला खान आवंटन में गड़बड़ी पर बड़ा राजनीतिक जाल बिछाया और यह विवाद भी कांग्रेस पतन का कारण बना। भाजपा सत्ता में आ गई, लेकिन पिछले तीन वर्षों में कोयला कंपनियां कानूनी मामलों में फंस गईं और भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) से बिजली संयंत्र खरीदने के उनके सौदे अधर में लटक गए।
मनमोहन सिंह की ईमानदारी और भलमनसाहत पर कोई प्रश्न नहीं उठाया गया। यह तर्क भी दिया जाता है कि वह राजनीतिज्ञ ही नहीं हैं। उनके वित्त मंत्री रहते शेयर घोटाले जैसे आरोप आने पर सारा कीचड़ नरसिंह राव के सिर पर उलट दिया गया। 2004 से 2014 तक दस वर्ष प्रधानमंत्री रहते हुए सरकार पर घोटालों और भ्रष्टाचार के गंभीरतम आरोप लगे एवं कांग्रेस पतन के गर्त तक पहुंच गई।
एक तरफ महाराष्ट्र लगातार सूखे से जूझ रहा है, दूसरी तरफ ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट ‘द ग्रेट वाटर ग्रैब-हाउ द कोल इंडस्ट्री इज डिपनिंग द ग्लोबल वाटर क्राइसिस’ में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि अकेले महाराष्ट्र में कोयला पावर प्लांट्स इतनी अधिक मात्रा में पानी का खपत करता है जो हर साल लगभग सवा करोड़ लोगों के लिये पर्याप्त है।
भारतीय नेता यूं मीडिया को हर बात पर कोसते रहते हैं। लेकिन उन्हें कभी-कभी ईमानदार और साहसपूर्ण पत्रकारिता की तारीफ भी कर देनी चाहिए। आखिरकार बोफोर्स, टू जी स्पेक्ट्रम, कोयला घोटाले और विदेश में जमा काले धन और बैंक खातों का पर्दाफाश भारत के खोजी पत्रकारों ने ही किया है।
सीबीआई की एक विशेष अदालत ने झारखंड इस्पात प्राइवेड लिमिटेड (जेआईपीएल) और इसके दो निदेशकों आर.एस. रूंगटा और आर.सी. रूंगटा को राज्य में एक कोयला खान आवंटन में हुई अनियमितता के संबंध में दोषी ठहराया है। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश भरत पराशर ने कंपनी और इसके दो निदेशकों को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र) और 420 (धोखाधड़ी) का दोषी पाया गया।
विशेष अदालत कोयला घोटाला मामले में अपना पहला फैसला कल सुना सकती है। यह मामला झारखंड में एक कोयला ब्लाक आबंटन से जुड़ा है और इसके अभियुक्तों में झारखंड इस्पात प्राइवेट लि. (जेआईपीएल) तथा उसके दो निदेशक भी शामिल हैं।