भारतीय मजदूर संघ ने अतंरराष्ट्रीय लेबर कॉन्फ्रेंस में भारत सरकार के श्रमिक विरोधी रवैये की कड़ी आलोचना की है। गौरतलब है कि (बीएमएस) को वर्तमान सरकार समर्थक श्रमिक यूनियन माना जाता है क्योंकि इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही खड़ा किया है।
गैर सरकारी संगठन क्राई :चाइल्ड राइट एंड यू: के विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि मध्यप्रदेश में करीब सात लाख बच्चे मजदूर हैं। इनमें से तीन लाख बाल मजदूर या तो निरक्षर हैं या उनकी पढ़ाई-लिखाई मजदूरी करने की वजह से प्रभावित हो रही है।
उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मंगलवार को वाराणसी के एक गांव में दलितों के साथ भोजन किया। समरसता भोज नाम के इस कार्यक्रम पर तंज कसते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि संदेश देने के लिए उन्होंने भी मजदूरों के साथ भोजन किया था, लेकिन कभी उनकी जाति नहीं पूछी थी।
मेघालय का एक छोटा सा गांव एक समय में देशी शराब बनाने और शराबियों को लेकर बदनाम था लेकिन अपनी छवि में आमूल परिवर्तन लाकर गांव ने एक अनूठी नजीर पेश की है।
आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के लक्ष्मीपुरम में एक मल्टीप्लेक्स के निर्माण स्थल पर शनिवार की रात जमीन धंसने से सात मजदूरों की मौत हो गई। हादसे में एक अन्य मजदूर को गंभीर हालत में बचाया गया और उसे इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को यूपी के बलिया में उज्जवल योजना की शुरुआत करते हुए पूर्ववर्ती सरकारों पर गरीबों के घर के बजाय मतपेटियों को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाने का आरोप लगाया। पीएम ने 1 मई को मजदूर दिवस के अवसर पर दुनिया को लेबरर्स यूनाइट दि वर्ल्ड का नारा भी दिया।
जर्मनी में अंधेरी-हिल्फे संगठन की 90 वर्षीय संस्थापक रोजी गोलमान को वर्ल्ड्स चिल्ड्रेन्स प्राइज के लिए नामांकित किया गया है। लाखों बच्चे मिलकर इस पुरस्कार के विजेता का चुनाव करेंगे जिसे पूरी दुनिया की मीडिया द्वारा चिल्ड्रेंस नोबल प्राइज कहा जाता है।
इसे वक्त की बेरुखी कहें या किस्मत का खेल, लेकिन शंघाई स्पेशल ओलंपिक में देश के लिए फख्र के लम्हे जुटाने वाला एक दिव्यांग एथलीट इन दिनों रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करने को मजबूर है। लखनउ के हामिद ने 2007 में शंघाई में हुए स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स में 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक हासिल कर देश का सिर गर्व से उंचा कर दिया था। लेकिन अफसोस कि इतनी बड़ी उपलब्धि भी उसकी किस्मत नहीं बदल सकी और आज वह अपने गुजर-बसर के लिए मजदूरी करने को बाध्य है।
डिजिटल इंडिया का नारा आकर्षक है। रिक्शे वाला और सब्जी विक्रेता अथवा दूर-दराज काम कर रहे मजदूर के पास भी मोबाइल फोन पहुंच गया है। सरकार गौरव के साथ कहने लगी है कि देश में एक सौ करोड़ मोबाइल फोन लोगों के हाथों में दिखने वाले हैं। इस क्रांति से लोगों को सुविधा हो रही है, लेकिन धीरे-धीरे सरकार और निजी कंपनियां गरीब लोगों की जेब अधिक खाली करने लगी है।