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चर्चाः टैक्स वसूली के बदले सुविधा भी | आलोक मेहता

चर्चाः टैक्स वसूली के बदले सुविधा भी | आलोक मेहता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टैक्स अधिकारियों से कहा है कि वे करदाताओं की संख्या मौजूदा 5.43 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ करें। इस समय 42 हजार अधिकारी सिर्फ 8 प्रतिशत टैक्स ही लाते हैं। उन्होंने टैक्स वसूली में डर के बजाय नरमी और संयम का वातावरण बनाने का आग्रह किया।
चर्चाः सिंहासन पर बैठ कांव कांव | आलोक मेहता

चर्चाः सिंहासन पर बैठ कांव कांव | आलोक मेहता

सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके कर्म-वचन जनता के हित के लिए होने चाहिए। सिंहासन पर बैठकर कांव कांव करना उन्हें शोभा नहीं देता। पेड़, शाखा, गांव, शहर और मंच पर छलांग लगाते हुए उन्हें अलग-अलग बातें नहीं करनी चाहिए।
चर्चाः ‌हथियारों के दलालों को कानूनी मान्यता | आलोक मेहता

चर्चाः ‌हथियारों के दलालों को कानूनी मान्यता | आलोक मेहता

हथियारों की दलाली को लेकर लगभग 30 वर्षों तक राजनीति करने वालों ने आखिरकार दिमाग ही नहीं बदला, नियम-कानून भी बदल दिये। राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने हथियारों से सौदों में किसी भी तरह के दलाल और दलाली पर प्रतिबंधात्मक कड़ा कानून बना दिया था और दुनिया के देशों को कहा गया कि रक्षा संबंधी समझौते और खरीदी सीधे सरकारों के माध्यम से ही होगी।
चर्चाः न्यायाधीशों का नमन | आलोक मेहता

चर्चाः न्यायाधीशों का नमन | आलोक मेहता

न्यायाधीशों के प्रति संपूर्ण समाज में सर्वाधिक सम्मान होता है। निचली अदालतों के फैसलों को चुनौती दी जाती है और अंतिम सीढ़ी यानी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को स्वीकारा जाता है। कभी कभार बेहद मजबूरी होने पर राष्‍ट्रपति के दरवाजे खटखटाए जाते हैं। अदालतों को न्याय का मंदिर ही माना जाता है।
चर्चाः चुनाव से पहले चिंगारी | आलोक मेहता

चर्चाः चुनाव से पहले चिंगारी | आलोक मेहता

पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव में अभी छह महीने से अधिक का समय है। लेकिन राजनीतिक पार्टियां जल्दी में हैं। समस्या, विकास, वायदों की चर्चा देर-सबेर होगी। राजनीतिक माहौल को गर्माने के लिए सांप्रदायिक चिंगारी डाली जा रही है।
चर्चाः अवैध धार्मिक स्‍थलों पर हथौड़ा | आलोक मेहता

चर्चाः अवैध धार्मिक स्‍थलों पर हथौड़ा | आलोक मेहता

अदालतें सचमुच इन दिनों कमाल कर रही हैं। सत्तारूढ़ या प्रतिपक्ष के नेताओं को भले ही अदालती न्याय से कष्ट हो रहा है, लेकिन जनता का विश्वास बढ़ता जा रहा है। अब हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक मामले की सुनवाई के बाद सख्त आदेश दिया है कि उ.प्र. में सड़कों के किनारे, चौराहे अथवा हाईवे या गलियों में बने अवैध धार्मिक स्‍थलों को तोड़ दिया जाए।
चर्चाः कानून बनाओ, हजारों जान बचाओ | आलोक मेहता

चर्चाः कानून बनाओ, हजारों जान बचाओ | आलोक मेहता

नितिन गडकरी काबिल मंत्री होने के साथ अपनी स्पष्टवादिता के लिए भी मशहूर हैं। पार्टी हो या सरकार, जिस समय अधिकांश मंत्री-नेता अपनी सफलताओं के ढोल पीट रहे हैं, नितिन गडकरी ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर स्पष्ट शब्दों में माना कि ‘देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं को रोकने में हम विफल रहे हैं। हम दुःख के साथ स्वीकारते हुए सारे तथ्य और आंकड़ों की रिपोर्ट भी सार्वजनिक कर रहे हैं, क्योंकि दुनिया में सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाएं भारत में हो रही हैं। प्रतिदिन 1410 दुर्घटनाओं में से 400 लोग मर रहे हैं।’ उन्होंने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ‘भारत में सड़क दुर्घटना रिपोर्ट-2015’ को जारी किया।
चर्चाः नदियों के संगम के लिए मंत्री का अनशन। आलोक मेहता

चर्चाः नदियों के संगम के लिए मंत्री का अनशन। आलोक मेहता

लोकतंत्र की यही ताकत है। केवल विरोधी अथवा गैर सरकारी संगठन नहीं केंद्र सरकार की वरिष्ठ मंत्री सुश्री उमा भारती ने बुंदेलखंड की प्यासी जमीन और लाखों लोगों को राहत देने के लिए केन-बेतवा नदियों को जोड़ने के प्रस्ताव पर मंजूरी नहीं मिलने की स्थिति में अनशन सहित आंदोलन की घोषणा कर दी है। उमाजी स्वयं जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री हैं। नदी जोड़ परियोजना उनके मंत्रालय के तहत है। वह स्वयं बुंदेलखंड की चुनी हुई जन प्रतिनिधि हैं।
चर्चाः अमेरिकी बिजनेस में हिस्सेदारी। आलोक मेहता

चर्चाः अमेरिकी बिजनेस में हिस्सेदारी। आलोक मेहता

वह जमाना गया, जब वचन देने वाले राजा-महाराजा बिना लिखा-पढ़ी हुए वायदा पूरा करने के लिए अपनी जान तक गंवाने को तैयार रहते थे। अब महाशक्तियां कू‌टनीतिक मित्रता ‘बिजनेस’ के लिए करती दिखती हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के हाथ-गले मिलने और मीठी बातों से अभिभूत होने की गलती न की जाए।
चर्चाः चाहे कोई हमें जंगली कहे। आलोक मेहता

चर्चाः चाहे कोई हमें जंगली कहे। आलोक मेहता

हम हिंदुस्तानी का जवाब नहीं। दुनिया के किसी मुल्क और उसके प्रदेश या राजधानी का नेता अपनी प्यारी जनता और व्यवस्‍था को ‘जंगली’ नहीं बताता। लेकिन हाल के वर्षों में हमारे ‘सत्यवादी’ नेताओं ने पर्दाफाश का ठेका लेकर कहना शुरू कर दिया है- ‘दुनियावालों सुन लो- देख लो- यहां है जंगल राज।’
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