परमाणु निरस्त्रीकरण की वकालत करने वाले संगठनों के एक समूह ने महाराष्ट्र के जैतापुर परमाणु परियोजना में गंभीर और विकराल समस्याएं होने का हवाला देते हुए कहा है कि इलाके के किसान एवं मछुआरे आज से इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे।
राजस्थान में सामाजिक संगठनों द्वारा निकाली जा रही जवाबदेही यात्रा पर हमले की खबर है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गृह जिले झालावाड़ के अकलेरा में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय व निखिल डे के साथियों पर कुछ लोगों ने हमला किया जिसमें करीब दर्जन भर कार्यकर्ता घायल हो गए हैं। आरोप है कि यह हमला भाजपा विधायक कंवर लाल मीणा और उनके समर्थको ने किया।
राहुल गांधी द्वारा कथित तौर पर खुद को ब्रिटिश नागरिक बताए जाने के आरोप के मामले में सीबीआई जांच की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को आज उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया।
सिर पर सुर्ख गुलाबी रंग की साड़ी का पल्लू , कंधों पर शॉल लपेटे हुए साठ वर्षीय रतन कंवर अपने काम में मग्न हैं। उनकी टेबल पर बिजली की तारें बिखरी हुई हैं और आसपास सौर लैंप रखे हैं। पेचकस हाथ में लिए वह कलपुर्जे के किसी बारीक पेच को सुलगा रही हैं। पूछे जाने पर ठेठ राजस्थानी में बताती हैं ‘ सूरज लालटण बणा री सूं । ‘ रतन कंवर जयपुर के ओखड़ास गांव की रहने वाली हैं। दस साल पहले इनके पति का देहांत हो गया था। दो शादीशुदा बेटे और दो बेटियां हैं लेकिन सभी अपनी जिंदगी में मसरूफ हैं। रतन कंवर का कहना है कि यहां यह काम सीखने के बाद वह अपने गांव लौटकर सौर लैंप और लालटेन बनाएंगी और उसे मरक्वमत करने का काम भी करेंगी। पढ़ाई-लिखाई के मामले में रतन कंवर के पास बताने को कुछ भी नहीं है लेकिन इस उम्र में इस विधा को सीखने के उनके जज्बे को सलाम है।
मास्को की मुलाकात कोई औपचारिक इंटरव्यू नहीं थी। न ही यह लुक-छिपकर की गई कोई भेंट थी। बढ़िया बात यह थी कि हमारा मिलना किसी सतर्क, कूटनीतिक, औपचारिक एडवर्ड स्नोडेन से नहीं हुआ। अफसोस की बात यह है कि कमरा नंबर 1001 में हुए मजाकों, हास्य और मसखरेपन को उसी तरह व्यक्त नहीं किया जा सकता।
देश में असहिष्णुता के माहौल को लेकर पुरस्कार वापसी का सिलसिला जारी है। अब जाने-माने फिल्म फिल्मकार कुंदन शाह, निर्देशक सईद मिर्जा और प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय समेत 24 फिल्मकारों ने अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाने का ऐलान किया है। इससे पहले दिबाकर बनर्जी और आनंद पटवर्धन समेत 11 लोगों ने अभिव्यक्ति की आजादी और असहिष्णुता के मुद्दे पर अपने पुरस्कार लौटा दिए थे।
कभी संजीदगी, कभी खिलखिलाहट और कभी आंखों से बहते हुए आंसू। कलाकारों की बांसुरी और उनकी आवाज से अपने नगमों को सुनकर नामचीन गीतकार संतोष आनंद के चेहरे पर कई भाव आ और जा रहे थे। पूरी महफिल उन्हें खुश होते देखकर खुश होती थी और उन्हें गमगीन देखकर रो पडती, लेकिन सबको खुशी इस बात की थी कि ठीक एक साल पहले अपने बेटे और बहू की असामयिक मौत के गम को पीछे छोड़ते हुए वह अपनी जिंदगी में आगे की ओर बढ़े रहे हैं।