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Search Result : "पप्पू याद"

पप्पू ने दी इस्तीफे की धमकी

पप्पू ने दी इस्तीफे की धमकी

बिहार के मुख्यमंत्री पद से जीतन राम मांझी को हटाने का विरोध करने वाले राजद के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने आज नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए जदयू नेता एवं उनके सहयोगियों पर राजद को समाप्त करने का प्रयास करने का आरोप लगाया।
बरास्ते मांझी नए एनडीए की तैयारी

बरास्ते मांझी नए एनडीए की तैयारी

बिहार में मचे राजनीतिक घमासान के बीच राष्ट्रीय जनतांं‌‌त्रिक गठबंधन में एक और नए सियासी दल के जुड़ने की संभावनाएं नजर आने लगी हैं। अगर सूत्रों की बात पर भरोसा किया जाए तो मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के साथ इस नए दल के खेवनहार हो सकते हैं राष्ट्रीय जनता दल के सांसद पप्पू यादव।
पेशावर के बच्चों की याद में वीडियो

पेशावर के बच्चों की याद में वीडियो

पाकिस्तान के मशहूर अभिनेता और संगीतकार अली ज़ाफ़र पेशावर सैनिक स्कूल में मारे गए बच्चों की याद में एक वीडियो बना रहे हैं। इस वीडियो वहां की पचास नामचीन हस्तियां हिस्सा ले रही हैं।
एक धीमी सी याद

एक धीमी सी याद

उनकी मुंदी आंखों के नीचे अंधेरे की गाढ़ी परत बिछी हुई थी। सरकारी अस्पताल के उस आईसीयू में गुजरे जमाने के मशहूर गवैए उस्ताद इकराम मुहम्मद खान को उनकी जिंदगी आखरी सलामी देने की तैयारी कर रही थी।
वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वंचितों से पूछिए वसंत का लैंडस्केप

वन भूमि पर सामुदायिक अधिकारों के दावा फॉर्म अधिकतर जगहों पर न तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं न उनकी जानकारी दी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार पूरे राजस्थान में अब तक केवल 150 सामुदायिक दावे ही पेश हो पाए हैं। अधिकतर वन अधिकार समितियां निष्क्रिय होने के कारण भौतिक सत्यापन नहीं हो पा रहा है। जहां वे सक्रिय हैं वहां वन विभाग और पटवारी सहयोग नहीं कर रहे हैं। समितियों, यहां तक कि ग्राम सभाओं द्वारा सत्यापित दावों को भी नौकरशाही नहीं सत्यापित कर रही है। कुछ जगहों पर अनपढ़ लोगों को धोखे से कब्जा छोडऩे के दावे पर हस्ताक्षर कराए जा रहे हैं। कहीं-कहीं दावेदारों के मौके पर काबिज होने के बावजूद काबिज नहीं होना दिखाया जा रहा है। साक्ष्यों की सूची में दावेदारों को नियमत: तीन में दो साक्ष्य मांगे जा रहे हैं। इस मामले में वन विभाग ग्राम सभाओं को भी गुमराह कर रहा है। नियमत: हर स्तर पर सत्यापन तक लोगों को बेदखल नहीं किया जा सकता लेकिन कई जगह लोगों को बीच में ही लोगों को बेदखल किया जा रहा है। गैर आदिवासी जंगलवासियों के दावे सीधे नामंजूर किए जा रहे हैं जो नियम विरुद्ध है। अभी तक 1980 के पहले के दावों का ही सत्यापन किया जा रहा है जबकि कानून 2005 तक के कब्जे मान्य होने चाहिए।
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