पहली बार मैं किसी मामले में अमित शाह से खुद को पूरी तरह सहमत पाता हूं। यह कि बिहार चुनाव केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों और कामकाज पर जनमत संग्रह नहीं है।
बीफ को लेकर छिड़ी बहस के बीच केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र का कथित बयान सामने आया है कि बीफ खाना है तो अगर खूब खाओ लेकिन इसका प्रचार मत करो। जो यह पसंद नहीं करते उन्हें उस बारे में क्यों बताया जाए?
धर्म या संप्रदाय की स्वनिर्मित अवधारणाओं के आधार पर अस्मिता या राष्ट्रीयता को परिभाषित करने वाली विचारधारात्मक सनक के हाथों भिन्न विचारों और आस्था वाले लोगों के साथ हिंसा और प्रताड़ना के आजादी के बाद से चले आ रहे सिलसिले को देखता हूं तो सोचता हूं, इस देश में कौन सुरक्षित है?
श्रीलंकाई तमिलों की तरह नेपाली मधेसियों के साथ भारत के घनिष्ठ सांस्कृतिक, जातीय और भाषायी संबंध हैं। सिर्फ श्रीलंकाई तमिल और मधेसी तो क्या, अगर आप सिंहल या गोरखा एवं गोरखा पूर्व इतिहास में गहरे उतरें तो भारत के साथ संबंधों का एक जैविक तंतु-जाल देखेंगे।
चुनाव आयोग का बिगुल बजने से पहले और चुनाव अभियान चल निकलने के साथ ही आगामी विधानसभा चुनावों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने नतीजे दिखाने शुरू कर दिए। कुछ बानगी:
विवादों के बीच भोपाल में शुरू हुआ 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन बगैर कोई छाप छोड़े समाप्त हो गया। पूरे कार्यक्रम के आयोजन में इसके उद्घाटन और समापन पर ही आयोजकों का सारा फोकस था। पर उसके बावजूद कार्यक्रम पूरी तरह से अपने उद्देश्यों से दिशाहीन होकर समाप्त हो गया। विवादों का ही असर हुआ जिसके चलते सदी के महानायक अमिताभ बच्चन इसके समापन समारोह में अपने पहले से तय कार्यक्रम के बावजूद नहीं आए।
राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक सत्ता क्रम को नियंत्रित करने वाले वर्गों, समूहों, समुदायों और संस्थाओं के इस्तेमाल की भाषा में उनके वर्चस्ववादी पूर्वग्रहों के शब्द-संकेत देखे और व्याख्यायित किए जा सकते हैं। भारत की आजादी के 68 वर्ष बीतने पर हमारे राजनीतिक और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के चालू विमर्श में हम ऐसे दो चलताऊ जुमलों की निशानदेही करना चाहेंगे जिनके निहितार्थ हमारी स्वतंत्रता सीमित करने के संदर्भ में गंभीर हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी के बीच तीखी जुबानी जंग अब केंद्र द्वारा ताकत आजमाइश तक उतर आई है। इसी के बरक्स वरिष्ठ भाजपा नेता राम नाथ कोविंद को बिहार का राज्यपाल नियुक्त करने की घोषणा की गई है। केंद्र के इस फैसले से नीतीश कुमार को निराशा है।
उत्तर प्रदेश में सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव बढ़ गया है। ताजा टकराव लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर है। उतर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कराकर लोकायुक्त की नियुक्ति की जो फाइल राज्यपाल को भेजी थी। राज्यपाल ने उस फाइल को लौटा दिया।
दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति से संबंधित फाइल उप राज्यपाल की स्वीकृति हासिल करने के लिए नहीं भेजी, हर वर्ष नई आबकारी नीति लागू करने से पहले इसे उप राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है, लेकिन इस बार ऐसी कोई फाइल नहीं भेजी गई।