महाराष्ट्र में विदेशी विचारधारा ‘गोडसेवाद’ की खूनी आंधी चल रही है। यह पहले ही दो प्रमुख बुद्धिवादियों को मौत के घाट उतार चुकी है: अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष नरेंद्र दाभोलकर और कम्यूनिस्ट नेता गोविंद पानसरे। तीसरी बलि लेने के लिए कसाई गोडसेवाद अब ठीहे पर डॉ. भारत पाटणकर की गर्दन घसीट लाना चाहता है जो महाराष्ट्र के वैकल्पिक सांस्कृतिक संगठन, विद्रोही सम्मेलन और श्रमिक मुक्ति दल के प्रमुख हैं। विद्रोही सम्मेलन की स्थापना महाराष्ट्र के साहित्य सम्मेलन के समानांतर संगठन के बतौर की गई है। पाटणकर की गर्दन के लिए अपने गंड़ासे की धार सान पर चढ़ाए गोडसेवादियों को मुसलमानों के प्रति कथित नरमी के अलावा सबसे ज्यादा एतराज उनके विद्रोही सम्मेलन का नेतृत्व संभालने पर है।
वैश्विक बाजार में अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर की मजबूती से अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में शुरूआती कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रूपया 50 पैसे कमजोर होकर 62.66 रूपये प्रति डॉलर पर आ गया है।
पाकिस्तान की परेशानियों को और बढ़ाते हुए यूरोपीय यूनियन ने इस बात पर चिंता जताई है कि पाकिस्तान उसके द्वारा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर दिए जा रहे पैसे का दुरुपयोग कर रहा है कि और यह पैसा उल्टा आतंकी समूहों के हाथ में ही पहुंच रहा है।
मोदी सरकार ने लोकसभा में वीमा विधेयक पेश कर दिया है। इस विधेयक में वीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने की वकालत की गई है। पिछले साल मोदी सरकार इस सिलसिले में एक अध्यादेश जारी कर चुकी है।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि विदेशी निवेश आकर्षित करने के प्रयासों के तहत भारत की नई सरकार आगामी बजट में सुधारवादी उपाय पेश करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले दिनों में विदेशी निवेश को आकर्षित करने एवं भारत को उत्पादन के लिए पसंदीदा स्थान बनाने के लिए भी अनुकूल प्रयास किए जाएंगे।
विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले सप्ताह छह अरब डालर की वृद्धि दर्ज की गई और यह बढ़कर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। अत्यधिक उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का कोई स्तर पर्याप्त नहीं होता है।
गृह मंत्रालय को उस समय झटका लगा जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस पर विदेशी फंड पर लगी रोक को हटा दिया। अदालत ने विदेशी चंदे को प्राप्त करने पर लगाई गई रोक को असंवैधानिक, एकपक्षीय और गैरकानूनी कदम माना। इस फैसले को गैर सरकारी संगठनों ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी की जीत बताया।