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एन.जी.ओ. के धंधे पर तलवार। आलोक मेहता

एन.जी.ओ. के धंधे पर तलवार। आलोक मेहता

सुप्रीम कोर्ट ने देश में कुकुरमुत्तों की तरह फैल गए 30 लाख एन.जी.ओ. के धंधे पर तीखा वार किया है। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि स्वयंसेवी संगठन के नाम पर विदेशों से करोड़ों रुपया लेने वाले टैक्स तक नहीं चुकाते। यूं केंद्र सरकार ने भी पिछले दो वर्षों में विदेशी धन के बल पर गड़बड़ी करने वाले कुछ संगठनों पर अंकुश लगाया। इस पर संगठनों और राजनीतिक दलों ने पूर्वाग्रह के आरोप लगाए।
रेल या‌त्रियों को ‘बुलेट’ की मार । आलोक मेहता

रेल या‌त्रियों को ‘बुलेट’ की मार । आलोक मेहता

चीन और जापान की तरह भारत में बुलेट ट्रेन चलने में कई वर्ष लगने वाले हैं। चलेगी तो मुंबई और अहमदाबाद के बीच अधिकतम पैसा देकर यात्रा करने वाले देशी-विदेशी संभ्रात-संपन्न वर्गों को सुविधा होगी। लेकिन उस बुलेट ट्रेन से पहले रेलवे बोर्ड ने 163 साल के इतिहास में रिकार्ड तोड़ अच्छी ट्रेनों के किराये विमान सेवाओं की तरह बढ़ा दिए। मतलब राजधानी, दुरंतो और शताब्दी जैसी ट्रेनों में अधिकांश सीटों का किराया 50 प्रतिशत बढ़ जाएगा। फैसला कल 9 सितंबर से ही लागू हो रहा है। इससे पहले यह निर्णय सर्वविदित हो गया है कि अगले वित्तीय वर्ष से रेल बजट संसद में अलग से प्रस्तुत नहीं होगा। आम बजट का हिस्सा होने से रेल पर अलग से अधिक चर्चा भी नहीं होगी।
नेताजी सुभाष पर खुले अंतिम दस्तावेज। आलोक मेहता

नेताजी सुभाष पर खुले अंतिम दस्तावेज। आलोक मेहता

आखिरकार नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विमान दुर्घटना में दुखद मृत्यु के संबंध में जापान सरकार के प्रामाणिक दस्तावेज सामने आ गए। पिछले 70 वर्षों से इस मुद्दे पर विरोधाभास वाली सूचनाएं एवं टिप्पणियां आती रहीं। राजनीतिक दलों ने भी इस विवाद को गरमाया।
कहानियों की किताब जिसमें हर कहानी है 140 अक्षरों से कम की

कहानियों की किताब जिसमें हर कहानी है 140 अक्षरों से कम की

जब लेखक और इलस्ट्रेटर मनोज पांडे ने सलमान रश्दी, मार्गरेट एटवुड और तेजू कोले जैसे अपने पसंदीदा लेखकों को उनकी प्रतिक्रिया पाने की आशा में अपने ट्वीट में टैग करना शुरू किया तब वे नहीं जानते थे कि उनकी प्रतिक्रिया भी अपने आप में लघु कहानियां ही होंगी।
छुपा ‘रुस्तम’ अक्षय

छुपा ‘रुस्तम’ अक्षय

रुस्तम देखते हुए कई बातें दिमाग में एक साथ चलती हैं। सन 1959 में नानावटी केस पर बनी इस फिल्म को देखते हुए लगता है कि संपादन नीरज पांडे की फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत है। शायद यही वजह है कि रुस्तम की धीमी कहानी भी पकड़ छूटने नहीं देती।
चर्चा: छोटे पर्दे पर धार बिना तलवारबाजी। आलोक मेहता

चर्चा: छोटे पर्दे पर धार बिना तलवारबाजी। आलोक मेहता

मीडिया के कुछ लोगों को तो पूर्वाग्रही कहा जा सकता है और प्रतियोगी भाव कि प्रधानमंत्री ने अर्णब गोस्वामी को ही पहले इंटरव्यू के लिए क्यों चुना? हम जैसे पत्रकार मानते हैं कि यह अर्णब गोस्वामी की बड़ी सफलता है, जो प्रधानमंत्री को अपने चैनेल को इंटरव्यू के लिए तैयार कर सके। इसी तरह नरेंद्र मोदी ने भी पुराने ढर्रे को त्यागकर दूरदर्शन अथवा लोक सभा, राज्य सभा टी.वी. चैनलों के बजाय एक निजी चैनल को इंटरव्यू देने का फैसला कर नया अध्याय जोड़ा। यूं उनकी सरकार दावा यही करती है कि प्रसार भारती के दूरदर्शन चैनल की पहुंच दूरदराज के गांवों सहित देश के हर कोने में है, जहां निजी अंग्रेजी चैनल तो क्या हिंदी चैनल की पहुंच भी नहीं है।
चर्चा : जनमत संग्रह के भूत का मोह। आलोक मेहता

चर्चा : जनमत संग्रह के भूत का मोह। आलोक मेहता

ब्रिटेन पर कब कितना असर होगा, कोई नहीं बता सकता। लेकिन जनमत संग्रह के हिंदुस्तानी प्रवर्तक अरविंद केजरीवाल ‘भूत-चुड़ैल-आत्मा’ को जगाने-बुलाने के तमाशे में माहिर हैं। वह पिछले दो वर्षों के दौरान ‘जनमत संग्रह’ शैली में डेढ़ करोड़ की आबादी में से डेढ़ लाख के नाम पर बटन दबवाकर अपना फरमान जारी करते रहे हैं।
‘हाउसफुल’ होना तो मुश्किल है

‘हाउसफुल’ होना तो मुश्किल है

अक्षय कुमार तो कई तरह की फिल्में करते रहते हैं। उनके लिए यह खतरा मोल लेना ठीक है कि वह हाउसफुल जैसी फिल्में कर लें लेकिन इस फिल्म के बाकी कलाकारों ने क्या सोच कर इस फिल्म में काम किया होगा यह तो वही जाने।
चर्चा : ‘बंधु’ देखते रहे, दादाओं ने कब्जा जमाया। आलोक मेहता

चर्चा : ‘बंधु’ देखते रहे, दादाओं ने कब्जा जमाया। आलोक मेहता

राजनीति में चेहरे बदल जाते हैं, चरित्र नहीं बदल पा रहा है। इस बार राज्य सभा चुनाव के ‌लिए प्रदेशों से विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चुने गए कुछ विवादास्पद उम्मीदवारों से यही साबित हो रहा है। विशेष रूप से राजनीति में सबसे हटकर ‘चाल-चरित्र’ का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से पार्टी के ‌लिए समर्पण भाव से काम करने वालों को तकलीफ हो सकती है।
मदन कश्यप को केदार सम्मान

मदन कश्यप को केदार सम्मान

सन 2015 के लिए समकालीन हिन्दी कविता का चर्चित केदार सम्मान इस साल वरिष्ठ कवि मदन कश्यप को दिया गया। प्रख्यात आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय ने कहा, मदन कश्यप मूलगामी काव्य दृष्टि के कवि हैं। मूलगामी दृष्टि वह है जो अपने समय के मनुष्य और समाज के भाव-कुभाव और स्वाभाव को जानती हो, दोनों के छल-छद्म, आतंक और क्रूरता को पहचानती हो और उन सबसे मुक्ति की राह बनाती हो।
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