देश में पिछले दो सालों में खाने पीने की चीजों के दामों में बेेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। लोग इसका रोना भी रो रहे हैं। लेकिन रोजमर्रा के उपयोग की इन वस्तुओं के दामों में कोई कमी नहीं आई। इन सबके बीच शिक्षा पर भी महंगाई की मार पड़ी है। पिछले दो सालोंं में स्कूलों की फीस और शिक्षण सामग्री भी महंगी हुई है।
केंद्र सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम और आर्थिक विकास के तमाम वादे के विपरीत देश के निर्यात में लगातार 13वें महीने गिरावट दर्ज की गई है। वैश्विक मांग में नरमी के बीच दिसंबर 2015 में भारत का निर्यात 14.75 प्रतिशत गिरकर 22.2 अरब डालर रह गया। जबकि व्यापार घाटा बढ़कर चार महीने के उच्चतम स्तर 11.6 अरब डालर पर पहुंच गया है। जबकि पिछले साल इसी अवधि में व्यापार घाटा 9.1 अरब डॉलर था।
किसान जो पहले ही जलवायु परिवर्तन समेत कई प्रकार की समस्याओं से जूझ रहे हैं। अब देश में गैरकानूनी और नकली कीटनाशी दवाओं के बेचे जाने का जख्म भी झेल रहे हैं। पंजाब में हुआ हालिया फसल नुकसान जहाँ नकली कीटनाशी के कारण कपास की फसल पूरी तरह तबाह हो गयी, इसी का एक उदाहरण है।
पिछले कई महीनों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों में जारी कटौती को देखते हुए लगातार तीसरी बार विमान ईंधन यानी एटीएफ के मूल्यों में फिर से 1.2 प्रतिशत की कटौती की गई। वहीं खुले बाजार में बिकने वाली रसोई गैस (एलपीजी) के प्रति सिलेंडर मूल्य में 61.50 रुपये की वृद्धि की गई है।
सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी बिक्री को मंजूरी दे दी। इससे सरकारी खजाने में 20,000 करोड़ रुपये प्राप्त हो सकते हैं।
प्रतिकूल वैश्विक परिस्थितियों और मुश्किलों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था अभी आगे बढ़ने में कामयाब है। यह बात वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कही। भारतीय उद्योगपतियों की दुबई आयोजित एक सभा में जेटली ने कहा कि पहले आर्थिक संकट 10-15 साल में एक बार असर दिखाते थे, लेकिन अब ये जल्दी जल्दी आने लगे हैं।
देश में प्याज की कीमत अभी 60-70 रुपये के आसपास बनी हुई है लेकिन मिस्र से इसके आयात के बाद जल्द ही बाजार में प्याज की कीमत सामान्य होने के आसार हैं। पिछले दो महीनों के अंदर सरकार ने मिस्र से 18 हजार टन प्याज का आयात किया है। मंडियों में सुर्ख लाल रंग के प्याज पिछले हफ्ते से दिखने लगे हैं।
सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी और ऑयल इंडिया से वापस ली गई 69 छोटी और सीमांत तेल एवं गैस फील्ड्स की नीलामी कर उन्हें एक नए राजस्व हिस्सेदारी मॉडल के तहत ऐसी निजी कंपनियों को देगी जो पूर्ण विपणन व मूल्य निर्धारण स्वतंत्रता की पेशकश करेंगी।
दुनिया की शीर्ष 500 कंपनियों की फार्च्यून पत्रिका की सूची में जहां सिर्फ 7 भारतीय कंपनियों जगह बना पाई हैं वहीं चीन की 100 कंपनियां इस सूची में शामिल हैं। बड़ी कंपनियों के मामले में चीन की तुलना सिर्फ अमेरिका से हो सकती है जिसकी 128 कंपनियां इस सूची में हैं।