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मैगज़ीन डिटेल

“एक-दो न्यूज चैनलों से पूरा टीवी मीडिया शर्मसार”

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद जिस तरह टेलीविजन चैनलों पर इसकी रिपोर्टिंग हो रही है, उससे तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं।

शर्मिंदगी का सबब

सुशांत की मौत चाहे जिस वजह से हुई हो, वह बेहद दुखद है मगर उसके बाद का घटनाक्रम भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं।

चिट्ठी वाले नहीं दांव पर पार्टी

संगठन में सुधार के लिए पत्र लिखने वाले 23 नेताओं पर गांधी परिवार की भौंहें तनीं मगर कांग्रेस में जान फूंकने की चुनौती भारी

खामोश! मीडिया चालू आहे....

फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह की रहस्यमय मौत की रिपोर्टिंग में टीवी चैनल जूरी, जासूस, जांचकर्ता, इंसाफ देने वाला और जल्लाद सब एक साथ बन बैठे तो पत्रकारिता मानो हांफने लगी

फेक न्यूज चलाने वालों ने माफी तक नहीं मांगी

बात 1994 की है, जब इसरो जासूसी केस शुरू हुआ था।

निचले स्तर पर टेलीविजन पत्रकारिता

मेरा मानना है कि सुशांत सिंह राजपूत पर की जा रही टेलीविजन पत्रकारिता काफी तुच्छ, बेसिर-पैर और खतरनाक स्तर पर हो रही है।

मीडिया आजाद है!

बिजनेस के तौर-तरीकों ने जनता के बीच मीडिया की साख पर सवाल खड़े किए

मीडिया नियमन प्राधिकरण बने

मीडिया नियमन प्राधिकरण के पास बिजनेस और संपादकीय सामग्री दोनों के नियमन का अधिकार हो

सप्तरंग

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वरिष्ठ अधिवक्ता को दोषी ठहराने और नाममात्र की सजा सुनाने से उभरे कई नए सवाल

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इस साल मार्च में कोरोनावायरस के चलते अप्रत्याशित लॉकडाउन से कॉलेज-विश्वविद्यालयों में पढ़ाई रुकी, तो छात्रों और शिक्षकों की तो जैसे दुनिया ही बदल गई।

मनभावन मोर बढ़े मगर...

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