कोविड-19 के दौरान अनेक मध्यवर्गीय परिवार कंगाल हो गए, परिवारों की जीवन भर की बचत चली गई, इसलिए यह कहना गलत कि गरीबी कम हुई है
राज्य में भाजपा की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के बीच नीतीश ने तेजस्वी की इफ्तार पार्टी में पहुंचकर नया संदेश दिया
हनुमान चालीसा के पाठ के बहाने मातोश्री की ताकत को चुनौती देने की कोशिश, तो शिवसेना ताकत बरकरार रखने की जुगत में
शिवराज सरकार ने विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आदिवासियों को लुभाने का अभियान छेड़ा
केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसा तो मुख्यमंत्री की मुश्किलें बढ़ सकती हैं
आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता रोजाना जनहित के मुद्दों पर सड़कों पर प्रदर्शन करते, पोस्टर और पैंफलेट वितरित करते नजर आ जाते हैं, लेकिन क्याक यह आसन्न चुनावों को तितरफा बनाने के लिए काफी है?
मायानगरी में अनूठे कलाकार पंकज त्रिपाठी की बिहार के दूर देहात से परदे पर छाने की अभिनव यात्रा
बिहार के एक छोटे-से गांव से निकलकर मुंबई मायानगरी में बुलंद मुकाम हासिल करने के इस सफर के बारे बातचीत
अभिनय की भारतीय और पाश्चात्य विधियों में दक्ष देसज पंकज जैसा कुशल अभिनेता जब किसी किरदार को निभाता है तो वह चमत्कार पैदा करता है, यही एक बेहतर अभिनेता का अपना गढ़ा हुआ क्राफ्ट कहलाता है
पंकज मंच पर रहते तो हैं बड़े स्टार के रूप में, लेकिन परिचित दिख जाए तो नाम लेकर दुआ-सलाम भी कर लेते हैं, परिचितों को यह मौका नहीं देते कि कभी रिकॉल कराकर पहचान बतानी पड़े, इंतजार करना पड़े
मगर खूबी यह कि पंकज त्रिपाठी जरा भी बदले नहीं दिखते, पटना के होटल मौर्या में अपने पुराने साथियों से उनकी बतकही पर एक नजर
आस-पड़ोस में चलती-फिरती, टहलती कहानियों के बीच उन्होंने सीखी सहजता
गंभीर किरदार निभाने के लिए मेरे दिमाग में पहला ख्याल पंकज त्रिपाठी का ही आएगा
पंकज त्रिपाठी की अभिनय यात्रा कठिन जरूर रही लेकिन आखिरकार उन्होंने वह मुकाम पा ही लिया जिसके वे हकदार हैं
आइपीएल में कई खिलाड़ियों के लिए फ्रेंचाइजी ने बढ़-चढ़कर बोली लगाई लेकिन खिलाड़ी अपनी ऊंची कीमत को सार्थक न कर सके, एक नजर ऐसे खिलाड़ियों पर
अतिक्रमण हटाने में बुराई नहीं लेकिन नियम-कायदे ताक पर रख देना चिंताजनक, इसकी सियासत पर उठे सवाल
सरकारी बेफिक्री ने महंगाई को बेकाबू किया, आगे हालात और विकट होने के आसार
जब पीएम वाराणसी से चुनाव लड़ सकते हैं तो मैं आसनसोल में बाहरी कैसे हो गया
वर्मा अपने अगाध अध्ययन और पांडित्यपूर्ण विश्लेषण से पाठकों को विवेक और तार्किकता से इन समस्याओं के प्रति विचार करना सिखाते हैं
चुनावी गुरुओं की पूछ और महत्ता तब तक बनी रहेगी जब तक हर राजनीतिक दल फिर से यह नहीं समझ लेता कि अंततः जनता से जुड़ना और उनकी आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप काम करके ही चुनाव जीता जा सकता है
बुलडोजर बाबा या बुलडोजर मामा कहलाना गर्व नहीं, शर्मिंदगी का प्रतीक