Advertisement
मैगज़ीन डिटेल

गांधी जयंती/नजरियाः हिंद स्वराज में आर्थिक तानाशाही से मनुष्य को बचाने के नुस्खे

आज का क्रोनी पूंजीवाद हमें आर्थिक तानाशाही की तरफ ले जा रहा है, जो लोग इसके नकारात्मक प्रभावों के कारण आज तकलीफ में हैं, उन्हें हमें राहत पहुंचानी होगी

आवरण कथा/देव आनंद जन्मशती: मायानगरी की देव-कथा

पचास और साठ के दशक के नायकत्व का आध्यात्मिक अतिक्रमण वह दुर्लभ तत्व है, जो राज कपूर और दिलीप कुमार से देव आनंद को अलग करता है, अंतिम सांस तक खुद को और हिंदी सिनेमा को पुनर्नवा बनाने का संघर्ष करते रहे राजू गाइड के स्वामी में रूपांतरण का एक सफरनामा

संस्मरण/देव आनंद जन्मशती: हर फिक्र का बोझ उठाता गया

समाज और राजनीति पर पैनी नजर और हर नाइंसाफी के खिलाफ खुलकर खड़ा होने वाले बिरले फिल्मकार थे देव साहब

आवरण कथा/देव आनंद जन्मशती: कुछ खास फिल्में

देव आनंद सिर्फ एक कलाकार का नहीं, बल्कि फसाने का नाम है

सियासी पहलू/देव आनंद जन्मशती: राजनीति में देव

रूपहले परदे पर इश्क सिखाने वाला एक कलाकार दलगत राजनीति में तीसरा विकल्प देने की हद तक सक्रिय हो चुका था, यह जानना ही अपने आप में अचंभा पैदा करता है

उत्तर प्रदेश/वनटांगिया समुदाय: वनटांगिया के जंगलों में रामराज

बरसों से जंगल में रहने को अभिशप्त समुदाय में विकास गतिविधियों के माध्यम से भाजपा ने बढ़ाई अपनी पैठ

मध्य प्रदेश: सौर ऊर्जा का सांची संदेश

सोलर सिटी और ईको फ्रेंडली सुविधाओं के जरिये प्रदूषण कम करके टूरिज्म को बढ़ावा देने की कोशिश

फिल्म/नजरिया: शिक्षक शाहरुख खान

एक व्यावसायिक मगर शिक्षाप्रद फिल्म जिसने युवाओं को सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया

सप्तरंग

ग्लैमर जगत की हलचल

महिला आरक्षण: दूर के ढोल क्यों बाजे झमाझम

विशेष सत्र में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को एक-तिहाई प्रतिनिधित्व देने का विधेयक पारित तो हुआ मगर यह दूर की कौड़ी

गांधी जयंती: गांधी की स्त्री पलटन

देश ही नहीं, यूरोप की कई महिलाएं भी गांधी की दीवानी बनीं और भारत को ही अपना सेवा- बना लिया

नजरिया/ भाषा संवाद: सार्वजनिक संवाद में भाषा के सबक

कविता हमारे भीतर उमड़ रहे गहरे भावों को खंगालकर उन्हें अभिव्यक्त करने का माध्यम है

प्रथम दृष्टि: देव आनंद होने के मायने

वह अनिश्चय से भरे फिल्म उद्योग में आशावाद की बेमिसाल प्रतिमूर्ति थे, जिन्हें व्यक्तिगत या व्यावसायिक जीवन के उतार-चढ़ाव से फर्क नहीं पड़ता था। निराशा उनके शब्दकोश का हिस्सा कभी नहीं रही

संपादक के नाम पत्र

भारत भर से आई पाठको की चिट्ठियां

शहरनामा/कौड़िया

ककड़ी, डंगरा, कलींदा वाला कस्बा

Advertisement
Advertisement
Advertisement