दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े और सबसे अहम चुनाव में सच के ऊपर झूठ का, असली के ऊपर नकली का साया मंडरा रहा, इस झूठ और फर्जीवाड़े को संभव बनाती है एआइ और डीपफेक की तेज विकसित होती तकनीक और कई टेक्नोलॉजी कंपनियां, क्या हैं खतरे
डीपफेक वीडियो का इस्तेमाल दुनिया भर के चुनावों में किया जाने लगा है। राजनैतिक पार्टियां डीपफेक बनाने वाली कंपनियों से करार कर रही हैं। देश में भी कंपनी ‘द इंडियन डीपफेकर’ पिछले विधानसभा चुनावों में कई पार्टियों के लिए डीपफेक बना चुकी है और लोकसभा चुनाव में भी कुछ पार्टियों के साथ काम कर रही है। आउटलुक के राजीव नयन चतुर्वेदी ने उसके संस्थापक 30 वर्षीय दिव्येंद्र सिंह जादौन से डीपफेक टेक्नोलॉजी और उसके राजनैतिक इस्तेमाल जैसे मुद्दों पर बातचीत की।
सुप्रीम कोर्ट के जोर से सामने आए चुनावी चंदा के आंकड़े बताते हैं कि अधिकतर कारोबारी क्षेत्र की कंपनी का सत्तारूढ़ दल सहित अन्य पार्टियों के साथ सीधा लेना-देना है, जिसकी कीमत नागरिकों को चुकानी पड़ रही है
एक सांस्कृतिक कार्यकर्ता होने के नाते मैं भी सामाजिक न्याय से जुड़े ऐसे आंदोलनों के साथ जुड़ गया। मैंने फर्जी गिरफ्तारियों पर अपनी आवाज उठानी शुरू कर दी। इसी के कारण मुझे गिरफ्तार किया गया
अब महज बाहुबल के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता। उम्मीदवारों के चयन के दौरान इस बात को उन दलों को समझना होगा जो लगता है, पुराने दौर के हैंगओवर से अब तक उबर नहीं पाए हैं