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गीता गर्ल को सम्मानित करेंगे मुख्यमंत्री

गीता गर्ल को सम्मानित करेंगे मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव श्रीमद्भगवद् गीता को लेकर आयोजित गीता चैम्पियंस लीग में पहला स्थान हासिल करने वाली छात्रा मरियम सिद्दीकी को सम्मानित करेंगे।
इस मुस्लिम बच्ची ने गीता के ज्ञान में सबको पछाड़ा

इस मुस्लिम बच्ची ने गीता के ज्ञान में सबको पछाड़ा

महज बारह साल की एक मुस्लिम लड़की ने मुंबई में भगवत गीता पर आधारित एक प्रतियोगिता जीत कर धर्म के कई ठेकेदारों को आईना दिखाया है। मीरा रोड इलाके के एक स्कूल की छठी कक्षा की छात्रा मरियम आसिफ सिद्दीकी ने प्रतियोगिता में शामिल हुए 4,500 बच्चों के बीच जीत हासिल की।
हाशिमपुरा: इंसाफ की राह में ठोकर

हाशिमपुरा: इंसाफ की राह में ठोकर

अट्ठाइस साल पहले हिरासत में पीएसी द्वारा मारे गए हाशिमपुरा के ४२ मुसलमानों की हत्या का कोई दोषी नहीं ठहराया गया। निचली अदालत द्वारा सबूतों के अभाव में सभी १६ आरो‌पियों को बरी करने के खिलाफ लोगों में आक्रोश है।
हिंदी साहित्यकारों को अंतरराष्ट्रीय सम्मान

हिंदी साहित्यकारों को अंतरराष्ट्रीय सम्मान

ढींगरा फाउंडेशन-हिंदी चेतना अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सम्मानों की घोषणा कर दी गई है। यह घोषणा वषऱर्ष 2014 के लिए है। इस के अंतर्गत यह पुरस्कार उषा प्रियंवदा (अमेरिका), चित्रा मुद्गल और ज्ञान चतुर्वेदी (भारत) को प्रदान किए जाएंगे।
गीता जौहरी के भी अच्छे दिन आये

गीता जौहरी के भी अच्छे दिन आये

मुंबई की एक विशेष अदालत ने सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गीता जौहरी के खिलाफ आरोपों को हटा दिया क्योंकि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए महाराष्ट्र सरकार से अनिवार्य अनुमति नहीं मिली।
सरकार कार्रवाई कर रही है इसलिए भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो रहे हैं

सरकार कार्रवाई कर रही है इसलिए भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो रहे हैं

आए दिन भ्रष्टïाचार के मामले उजागर होने, सूर्य नमस्कार एवं गीता की पढ़ाई लागू करने तथा गो तस्करी पर विवादास्पद कानून जैसे कदमों से संघ परिवार का सांप्रदायिक एजेंडा लागू करने के आरोपों के कारण मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर सवालिया निशान लग रहे हैं।
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
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