कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि संघ की समान नागरिक संहिता की मांग दरअसल एक आड़ है जिसके पीछे संघ की मंशा महिलाओं के अधिकारों को लेकर हिंदू पर्सनल लॉ और अपनी विचारधारा थोपना है।
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सबसे उम्रदराज पैरवीकार हाशिम अंसारी के बुधवार को हुए निधन से मुसलमानों और हिन्दुओं समेत पूरे समाज में दुख का माहौल है। विवादित ढांचा विवाद के आखिरी मूल वादी अंसारी ने कभी भी मुद्दे को लेकर सियासत नहीं की। सारी जिंदगी मुकदमे की पैरवी में निकाल देने वाले अंसारी को समाज का हर वर्ग और तबका सम्मान की नजर से देखता था।
कांग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत से कुछ घंटे पहले उनके साथ ट्विटर पर हुए विवाद में शामिल पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार से दिल्ली पुलिस ने इस मामले में पूछताछ की है। इससे पहले भी फरवरी में मेहर तरार की पसंद के अनुसार नई दिल्ली के एक प्रमुख होटल में उनसे पूछताछ हुई थी।
देश को आजाद हुए पैंसठ साल से अधिक का समय हो गया पर भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अभी तक आम राय नहीं बन पाई है। जब इतने समय पर यह नहीं हो पाया तो भाजपा अब क्या सोच समझ कर यूनिफार्म सिविल कोड का ताना-बाना बुनने लगी है। क्या छह माह में इसे लागू करने का दम केंद्र की भाजपा सरकार के पास है या यह महज एक चुनावी चुग्गा है। जो भाजपा ने यूपी चुनाव से पहले जनता की ओर फेंक दिया है।
पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री राम जेठमलानी ने रविवार को कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में विदेशी बैंकों में जमा कालाधन वापस लाने समेत तमाम वादों के मद्देनजर उन्होंने नरेंद्र मोदी का सहयोग किया था लेकिन अब वह खुद को इसके लिए गुनहगार और ठगा हुआ महसूस करते हैं।
बांग्लादेश की राजधानी ढाका के गुलशन इलाके में रेस्तरां में आतंकियों ने बंधक बनाए लोगों को निर्मम तरीके से मारा। आतंकियों ने 20 विदेशी नागरिकों की गला रेतकर हत्या कर दी। बांग्लादेशी कमांडो ने छह आतंकवादियों को मार गिराया और एक को जिंदा पकड़ लिया। ढाका पुलिस के दो अधिकारी भी शहीद हो गए।
केंद्र सरकार ने विधि आयोग को समान नागरिक कानून का प्रारूप बनाकर देने के लिए कहा है। यह मुद्दा नया नहीं है। वर्षों से इस पर चर्चा होती रही है और विभिन्न समुदायों, दलों, नेताओं द्वारा समय-समय पर समर्थन, असहमति और कुछ विरोध भी होता रहा है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) पर एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने विधि आयोग से इस मुद्दे का अध्ययन करने को कहा है। सरकार के इस पहल को समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है जिससे देश का राजनीतिक तापमान बढ़ने की आशंका है।
दुनिया में भले ही हर तरफ विकास की बात कही जा रही है लेकिन नवजात बच्चों की दुर्दशा पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। या यूं कहें कि विश्व का मानव समाज इस मसले पर मौन होकर अपनी हार स्वीकार करता जा रहा है। मानव समुदाय एक तरह से नवजात श्िाशुओं की हिफाजत नहीं कर पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) की ताजा रिपेार्ट में कहा गया है कि दुनिया में विभिन्न तरह के संक्रमण की वजह से पैदा होने के साथ ही दस लाख बच्चों ने दम तोड़ दिया।