प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंदन में शनिवार को भारतीय संविधान के निर्माता और दलितों के मसीहा बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर को समर्पित एक स्मारक का उद्घाटन किया। डा. अंबेडकर एक छात्र के रूप में अपने ब्रिटेन प्रवास के दौरान 1920 के दशक में यहां रहा करते थे।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी फलस्तीन की अल-कुद्स यूनिवर्सिटी को भारत की तरफ से आईटी उपकरण भेंट करने वाले हैं लेकिन इस्राइल भारतीय तोहफे में शामिल चार संचार प्रणालियों को विश्वविद्यालय में ले जाने की इजाजत शायद ही दे जिससे विवाद पैदा हो गया है।
उत्तर प्रदेश में गोमांस खाने की अफवाह से एक व्यक्ति की पीट पीट कर हत्या किए जाने की निंदा करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि इस प्रकार की घटनाएं देश की छवि खराब करती हैं।
सुब्रह़मण्यम स्वामी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद़यालय का कुलपति बनाने की चर्चा इतनी तेजी से शुरू हुई कि प्रायः हर किसी ने इसे सच मान लिया। अकादमिक दुनिया कान लगाकर आहट सुनने लगी। इस पर मीडिया माध्यमों से लेकर बौद्धिक तबके में विमर्श का दौर शुरू हो गया और सुब्रह़मण्यम स्वामी की टिप्पणियां भी सामने आ गई। उन्होंने अपनी योजनाएं भी बता दीं कि वे जेएनयू में किस प्रकार नक्सलियों और ड्रग्स के शिकार लोगों को काबू में करेंगे। यह अपेक्षा भी जता दी कि सरकार उन्हें खुली छूट दे तो वे काम करने को तैयार हैं।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) को आतंकवाद की नर्सरी कहने पर भड़के एएमयू छात्रों ने हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेशाध्यक्ष सुनील सिंह व अन्य नेताओं की गिरफ्तारी और प्रदेश में हिंदू युवा वाहिनी पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि 19 सितंबर की रात यूनिवर्सिटी कैंपस में रसायन विभाग के सामने छात्र आलमगीर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इससे छात्रों में आक्रोश है। आलमगीर यूनिवर्सिटी में सामाजिक कार्य विषय में स्नातक तृतीय वर्ष के छात्र थे।
कवि-कहानीकारों के लिए वैसे तो हर दिन हिंदी का दिन होता है। लेकिन साल में एक दिन खास मनाया जाता है जो हिंदी के लिए कोने-कोने में प्रयासरत लोगों को एक मंच पर जुटा लाता है।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में वामपंथियों का दबदबा इस बार भी कायम रहा है। पहली बार अध्यक्ष पद पर सीपीआई समर्थित ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) का उम्मीदवार जीता है लेकिन 14 साल बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) भी जेएनयूएसयू सेंट्रल पैनल में वापसी करने में कामयाब रही। दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में सभी सीटों पर जीतने वाली एबीवीपी के लिए यह एक बड़ी सफलता है। हालांकि, जेएनयू अभी भी लेफ्ट का गढ़ है लेकिन एबीवीपी का असर बढ़ रहा है।