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हर घटना के पीछे पाकिस्तान : विवेक काटजू

हर घटना के पीछे पाकिस्तान : विवेक काटजू

भारतीय विदेश सेवा के 1975 बैच के अफसर रहे विवेक काटजू के अनुसार, 'कोई भी राजनीतिक दल भारत में सत्ता में आए, वह कश्मीर को लेकर ज्यादा छेड़छाड़ नहीं करेगा। कश्मीर का मसला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। कश्मीर के विभिन्न इलाकों में अलग तरह का धार्मिक झुकाव दिखता है लेकिन कोई भी राजनीतिक दल घाटी में या पूरे जम्मू एवं कश्मीर में किसी तरह के ध्रुवीकरण की कोशिश नहीं करेगा।’
सचिवालय भर्ती घोटाला: दिग्विजय सिंह को मिली कोर्ट से जमानत

सचिवालय भर्ती घोटाला: दिग्विजय सिंह को मिली कोर्ट से जमानत

मध्यप्रदेश विधानसभा सचिवालय के भर्ती घोटाला मामले में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को भोपाल की एक स्थानीय अदालत से जमानत मिल गई। यह मामला उस समय का है, जब सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
भारत-पाकिस्तान की रिदम

भारत-पाकिस्तान की रिदम

देश में चाहे जितना भी गदर मचा हो मगर कला की दुनिया कभी सरहद नहीं मानती। नई फिल्म रिदम के प्रमोशन के लिए पाकिस्तान के कलाकार भारत आए हैं और उन्हें यह देश भी अपने घर की तरह ही लगता है।
विवेक मिश्र को आर्य स्मृति सम्मान

विवेक मिश्र को आर्य स्मृति सम्मान

16 दिसंबर की शाम हिंदी भवन, दिल्ली में किताबघर प्रकाशन के संस्थापक पं. जगत राम आर्य के जन्मदिन पर कथाकार विवेक मिश्र को उनके उपन्यास ‘डॉमनिक की वापसी’ के लिए ‘आर्य स्मृति साहित्य सम्मान 2015’ प्रदान किया गया। यह सम्मान हर साल साहित्य की किसी एक विधा को प्रकाशन के संस्थापक श्री जगत राम आर्य की स्मृति में दिया जाता है। इस बार उपन्यास विधा की पांडुलिपियां आमंत्रित की गई थीं। तीन सदस्य के निर्णायक मंडल, असगर वजाहत, प्रताप सहगल तथा अखिलेश ने विवेक मिश्र के उपन्यास ‘डॉमनिक की वापसी’ को इस सम्मान के लिए चुना।
हाशिये के लोगों पर काम करने वाले सम्मानित

हाशिये के लोगों पर काम करने वाले सम्मानित

रमणिका फाउंडेसन का सम्मान समारोह हाशिए के शब्दों को रेखांकित करने और पूरी शक्ति के साथ उनके समर्थन में खड़े होने के अपने संकल्प की ओर बढ़या गया एक ठोस और सार्थक कदम है
सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

सत्ता के ऊपर ज्ञान, व्यक्तियों के ऊपर विवेक

चुनिंदा नायकों या खलनायकों की भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के कारण इतिहास का सम्यक विवेचन नहीं हो पाता। जैसे गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना और माउंटबेटन पर ज्यादा जोर देने से हमें भारत विभाजन के बारे में कई जरूरी प्रश्‍नों के उत्तर नहीं मिलते। मसलन, देसी मुहावरे में आम जनता को अपनी बात समझाने में माहिर और उनमें आजादी के लिए माद्दा जगाने वाले गांधी अपने तमाम सद्प्रयासों के बावजूद नाजुक ऐतिहासिक मौके पर आम हिंदू-मुसलमान को एक-दूसरे के प्रति सांप्रदायिक दरार से बचने की बात समझाने में क्यों विफल रहे, नोआखली जैसी अपनी साक्षात उपस्थिति वाली जगह को छोडक़र? जिन्ना की महत्वकांक्षा और जिद को कितना भी दोष दें, कलकत्ता और अन्य जगहों का आम मुसलमान क्यों उनके उकसावे पर पाकिस्तान हासिल करने के लिए खून-खराबे पर उतारू हो गया?
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