दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा स्कूलों में मुश्किल विषयों को खेल-खेल में पढ़ना सिखाया जा रहा है। शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए अलग-अलग विषयों के शिक्षकों की कार्यशालाएं लगाई जा रही हैं। कमेटी की स्कूली शिक्षा परिषद के चेयरमैन और पूर्व विधायक हरमीत सिंह कालका के अनुसार स्कूलों में बेहतर नतीजों के लिए ऐसा किया जा रहा है। कालका के अनुसार फिलहाल ऐसा सिर्फ दिल्ली के स्कूलों में किया जा रहा है।
अमेरिकी सेना में लड़ाकू सैनिक के तौर पर तैनात एक सिख जवान को दुर्लभ अपवाद के तहत अस्थायी धार्मिक रियायत मिली है, जिसके तहत उसे दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने की अनुुमति होगी। यह जानकारी एक मीडिया रिपोर्ट के जरिए मिली है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर के साथ एक सिख युवक द्वारा कथित दुर्व्यवहार का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि उक्त युवक ने टाइटलर के साथ गाली-गलौज और धक्का-मुक्की की।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के 2002 के दंगों में तबाह अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में संग्रहालय के निमित्त धन का कथित रूप से गबन करने से संबंधित मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड और उनके पति को गिरफ्तारी से प्राप्त अंतरिम संरक्षण की अवधि आज 31 जनवरी तक बढ़ा दी। न्यायमूर्ति ए.आर. दवे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, अंतरिम राहत 31 जनवरी तक जारी रहेगी।
देश में कथित तौर पर बढ़ती असहिष्णुता पर विपक्ष समेत विभिन्न वर्गों की आलोचनाओं के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कांग्रेस पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद कांग्रेस को असहिष्णुता पर हमें उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है, वे इस विषय पर ड्रामा कर रहे हैं।
गाजियाबाद में सिख समुदाय ने आज 1984 के सिख विरोधी दंगे के पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की मांग को लेकर बजरिया-गुरूद्वारा से लेकर जीटी रोड घंटाघर तक कैंडल लाइट मार्च निकाला।
धर्म या संप्रदाय की स्वनिर्मित अवधारणाओं के आधार पर अस्मिता या राष्ट्रीयता को परिभाषित करने वाली विचारधारात्मक सनक के हाथों भिन्न विचारों और आस्था वाले लोगों के साथ हिंसा और प्रताड़ना के आजादी के बाद से चले आ रहे सिलसिले को देखता हूं तो सोचता हूं, इस देश में कौन सुरक्षित है?
जिसे जिसका मांस खाना हो खाए, कोई गाय को माता माने या न माने, कोई बार-बार विदेश जाकर भारत की जैसी मर्जी महिमा मंडन करे, कोई किसी को मुल्ला कहे या पाकिस्तानी। मुसलमानों के एक बहुत बड़े वर्ग को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। ये मध्य और निम्न मध्य वर्ग के वे मुसलमान हैं जो दंगों की लपटों में झुलस जाते हैं। इस वर्ग को मतलब है तो सिर्फ इस बात से कि इन्हें दो जून की रोटी मिलती रहे और रोटी कमाने वाले कायम रहें। ये अपने गांव में रहते रहें क्योंकि दूसरी किसी जगह पर ठिकाना नहीं है। इन्हें रहने के लिए गांव छोडक़र कैंपों में न जाना पड़े। यही इनकी सबसे बड़ी फिक्र है।