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										    क्या हम हल्दीराम की भुजिया खाने से पहले यह छानबीन करेंगे कि उस कंपनी में हमारी जात-बिरादरी, धर्म के कितने लोग, किन-किन पदों पर हैं? क्या झंडुु बाम लगाने से पहले भी हम उसकी धर्म-जाति तय करते हैं? अगर ऐसा नहीं है तो फिर रूह अफजा ने क्या बिगाड़ा है। इसकी मिठास में नफरत की चासनी क्यों मिलाई जा रही है? 
										
                                                                                
                                     
                                                 
  
  
  
  
  
  
  
  
  
			 
                     
                    