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नज़रिया

कपड़े उतारवाकर परीक्षा दिलवाना, अमानवीय है

कपड़े उतारवाकर परीक्षा दिलवाना, अमानवीय है

बिहार में जिस तरह से सैना में भर्ती के लिए आए लोगों को कपड़े उतार कर धूप में बैठाकर परीक्षा दिलवाई गई, वह बेहद अमानवीय है। ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। यह मानवता और मूल्यों दोनों के खिलाफ है।
मस्तक पर तिलक, चरणों में गंदगी

मस्तक पर तिलक, चरणों में गंदगी

विजय, सुख, समृद्धि के आशीर्वाद के साथ मस्तक पर तिलक लगा जय-जयकार हुई। गंगा-यमुना सहित अनेक नदियों का जल समेटे विशाल सागर की लहरों से करतल ध्वनि का आभास हुआ। सब हर्ष विभोर हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके साथ पहुंचे नेता-सहयोगी भी पिछले दिनों जगन्नाथ पुरी मंदिर के दर्शन के बाद दरवाजे पर प्रसन्न मुद्रा में दिखाई दिए। बारहवीं शताब्दी में निर्मित भव्य जगन्नाथ पुरी मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) की प्रतिमा वाले गर्भगृह में मरम्मत कार्य की वजह से एक वर्ष के लिए प्रवेश पर रोक लगी हुई है। लेकिन प्रबंध समिति ने महा भक्त नरेंद्र मोदी और उनकी मंडली को गर्भगृह में प्रवेश कर अर्चना एवं आशीर्वाद ग्रहण की अनुमति दे दी।
'मैंने मंटो पर फिल्म क्यों बनाई, इस्मत पर क्यों नहीं'

'मैंने मंटो पर फिल्म क्यों बनाई, इस्मत पर क्यों नहीं'

मैं उस समय दिल्ली के श्रीराम कॉलेज में पढ़ रही थी। हमारे कॉलेज में अफासानानिगार सआदत हसन मंटो की कहानी पर एक नाटक का मंचन हुआ। मंचन बहुत बेकार था लेकिन उसे देखने के बाद मुझे लगा कि मुझे मंटो को पढ़ना है। मैंने उनकी तमाम कहानियां, लेख और पत्र पढ़े।
'सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'

'सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'

कई बार निदा को अपने रेडियो स्‍टेशन के स्‍टूडियो में इंटरव्‍यू देते हुए सुनने का मौका मिला था और हर बार यही लगता था कि अपनी जड़ों से और अपने परिवार से कटने की कितनी तड़प निदा में थी। शायद इसी तड़प ने उनसे लिखवाया था, तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्‍यार ना हो/ जहां उम्‍मीद हो उसकी वहां नहीं मिलता/ कभी किसी को मुकम्‍मल जहां नहीं मिलता/ कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता’।
निजी कोचिंग सेंटर शिक्षा का संगठित माफिया

निजी कोचिंग सेंटर शिक्षा का संगठित माफिया

जिसका मन करता है, वह चार कुर्सी-टेबल लगा कर कोचिंग सेंटर खोल लेता है क्योंकि हमारे देश में स्कूल खोलना मुश्किल काम है। स्कूल खोलने के लिए कई औपचारिकताएं होती हैं, जिसे हर कोई पूरा नहीं कर सकता है लेकिन निजी कोचिंग सेंटर के लिए कुछ नहीं करना होता। इसके लिए देश में कोई रेगुलेटरी बोर्ड नहीं। कोचिंग सेंटर्स शिक्षा का रैकेट और संगठित माफिया है। इनके बड़े-बड़े होर्डिंग्स, विज्ञापन छात्रों को आकर्षित करते हैं। शिक्षकों को लगता है कि स्कूल या कॉलेज में क्यों पढ़ाना? वे स्कूल-कॉलेज में वे ट्रिक्स नहीं देते जो कोचिंग सेंटर में देते हैं। कोई नहीं जानता कि देश में कितने कोचिंग इंस्टीट्यूट्स हैं, ये सालाना कितने करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं।
चीनी मिलों को राहत और किसानों की मुसीबत

चीनी मिलों को राहत और किसानों की मुसीबत

केंद्र सरकार गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य बढ़ाने की बजाय चीनी मिलों को ब्या‍ज मुक्त‍ कर्ज, एक्स‍पोर्ट ड्यूटी में राहत और एथनॉल पर एक्सा‍इज ड्यूटी में छूट जैसी रियायतें देने वाली केंद्र सरकार ने अब चीनी मिलों को फायदा पहुुंचाने का नया रास्ता निकाला है। अब गन्ना किसानों को सरकार की ओर सीधे सब्सिडी दिए जाने की पहल की जा रही है जो गन्ना किसानों का ध्यान उनके बकाया भुगतान और पिछले कई साल से नहीं बढ़े दाम से हटाने की साजिश है।
मोदी ने जो सबक बिहार में नहीं सीखा वो सबक असम सिखाएगा उन्हें- मणिशंकर अय्यर

मोदी ने जो सबक बिहार में नहीं सीखा वो सबक असम सिखाएगा उन्हें- मणिशंकर अय्यर

पूर्वोत्तर के बारे में मैं कहना चाहूंगा कि असम एक ऐसा राज्य है, जहां अस्थिरता रही है। 70 के दशक में वहां भारी हंगामा रहा और 80 का दशक आते-आते हंगामा बढ़ता रहा। उसके समाधान के लिए, वहां लोकतंत्र लाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जो कदम उठाए वह आज तक किसी ने नहीं उठाए। सन 1985 में वहां हंगामा करने वालों की जीत हुई थी, उन्होंने सरकार चलाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने असम को बरबाद करके छोड़ दिया। उनमें हुकूमत बनाए रखने की क्षमता नहीं थी। लेकिन यह लोकतंत्र है, यहां जो जनता चाहेगी उसी की सरकार बनेगी। बेहतर प्रदर्शन के आधार पर वोट मिलेंगे। आखिरकार जनता ने सही सरकार चुनी।
‘विचार एबीवीपी से न मिलें तो देशद्रोही हो गए क्या?’

‘विचार एबीवीपी से न मिलें तो देशद्रोही हो गए क्या?’

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के संदर्भ में बात करें तो इस वक्त केंद्रीय संसाधन मंत्रालय द्वारा विश्वविद्लायों में एक विचारधारा थोपने की बात चल रही है। रोहित का लेना-देना सिर्फ हैदराबाद विश्वविद्लाय या वहां के प्रशासन मात्र से नहीं है बल्कि एक बड़े मसले से है। देश की विश्वविद्यालय व्यवस्था में इस समय वैचारिक हस्तक्षेप चल रहा है। वहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े लोगों की नियुक्तियां की जा रही हैं। देखा जाए तो जब से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है तब से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) सोचने लगी है कि कानून उनकी जेब में है।
‘राम मंदिर मुद्दा पैसा कमाने की मशीन है’

‘राम मंदिर मुद्दा पैसा कमाने की मशीन है’

मैं अयोध्या के बाराबंकी कस्बे का रहने वाला हूं। मैंने अपने इलाके और उसके आसपास कभी राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर नफरत का माहौल नहीं देखा। इस माहौल की शुरूआत दिल्ली से हुई। सन 1947 में हमारी जमीन बंटी और 1992 में हमारे दिल बंट गए। जिस दिन हमारे दिल बंटे, वह दिन हमारे लिए सबसे बदनसीब दिन था। चुनाव जीतने के चक्कर में हमारी नस्लें बरबाद हो गईं। हैरान हूं कि यह लोग अभी भी चैन से नहीं बैठ रहे हैं। आखिर यह इस मुद्दे को कहां ले जाकर छोड़ना चाहते हैं?
मंदिर निर्माण के लिए संवाद जरूरी

मंदिर निर्माण के लिए संवाद जरूरी

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की चर्चा भर से बुद्धिजीवियों एवं राजनीतिज्ञों का एक वर्ग छद्म आक्रोश व्यक्त करने लगता है। ऐसा ही तब हुआ जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल की श्रद्धांजलि सभा में राम मंदिर निर्माण के संकल्प को दोहराया। फिर क्या था। संघ पर सांप्रदायिकता, ध्रुवीकरण, न्यायालय की अवहेलना जैसे आरोप मढ़ दिए गए।
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