'सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला'
कई बार निदा को अपने रेडियो स्टेशन के स्टूडियो में इंटरव्यू देते हुए सुनने का मौका मिला था और हर बार यही लगता था कि अपनी जड़ों से और अपने परिवार से कटने की कितनी तड़प निदा में थी। शायद इसी तड़प ने उनसे लिखवाया था, तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार ना हो/ जहां उम्मीद हो उसकी वहां नहीं मिलता/ कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता/ कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता’।