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‘अल्पसंख्यकों के आक्रोश की वजहें समझनी जरूरी’

‘अल्पसंख्यकों के आक्रोश की वजहें समझनी जरूरी’

सरहद पार से आती है सदा कि सलामत रहे वतन। किसी भी तरह की आतंकवादी वारदात की तपिश कैसे लंदन में सक्रिय संगठनों तक पहुंच रही है, इसका अंदाजा लंदन में सक्रिय बिटिश ऑर्गनाइजेशन फॉर पीपुल ऑफ एशियन ओरिजिन (बोपा) के देवेंद्र प्रसाद से बातचीत में होता है
यह वह पार्टी नहीं, जिसमें हम आए थे: शांता कुमार

यह वह पार्टी नहीं, जिसमें हम आए थे: शांता कुमार

बतौर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के बाद भारतीय जनता पार्टी में पहली दफा मुखालफत की आवाज सुनाई दी। यह आवाज है पार्टी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की जिन्होंने मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटालों पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को पत्र लिख पार्टी में हड़कंप मचा दिया। शांता का यह पत्र महज पत्र नहीं है बल्कि भाजपा के अंदर एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की खाई और घुटन का सुबूत है। भाजपा में जो चल रहा है वह इनकी पीढ़ी के नेताओं के लिए हजम न होने वाला माहौल है। पार्टी के घुटन भरे माहौल पर शांता कुमार ने आउटलुक की विशेष संवाददाता से अपने दिल्ली स्थित निवास पर खुलकर बातचीत कीः
मुझ से पहले माउंटेन मैन दशरथ मांझी को मिले अवार्ड

मुझ से पहले माउंटेन मैन दशरथ मांझी को मिले अवार्ड

साधरण कद-काठी, साधारण चेहरा-मोहरा। सांवली रंगत लेकिन जन्मजात सहज अभिनय करने की कुशलता। यह हैं, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे बुढाना में जन्में और पले-बढ़े नवाजुद्दीन सिद्दीकी। नवाजुद्दीन किसी बड़े फिल्मी परिवार से नहीं हैं, न ही उनका बॉलीवुड में कोई गॉडफादर रहा। अपने दम पर नाम और शोहरत कमाने वाले नवाजुद्दीन के लिए यह सब बहुत आसान नहीं था। मुजफ्फरनगर में रहते हुए जहां उनके पास मनोरंजन के लिए टीवी नहीं था, उन्होंने लोक कलाकारों के बीच तमाशा, रामलीला देखते हुए अपना बचपन बिताया। नवाजुद्दीन उन्हीं कलाकारों की तरह होना चाहते थे। वैसे ही बनना चाहते थे। पर कैसे यह उन्हें उस वक्त पता नहीं था। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से स्नातक के बाद उन्होंने कई तरह की नौकरियां कीं। यहां तक की चौकीदार की भी। फिर भी अभिनय की भूख थी कि खत्म नहीं हुई थी। विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें और मजबूत कर दिया। इसी बीच उन्हें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बारे में पता चला और बस अभिनय के गुर सीखने वह यहां चले आए। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में रहते हुए उन्होंने कई नाटकों को करीब से जाना। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से कोर्स पूरा करने के बाद दिल्ली में ही उन्होंने कई नाटक किए और फिर वहीं चले आए, जो अभिनय की दुनिया में स्थापित होने के लिए मक्का है, मुंबई। एक लंबे संघर्ष के बाद खुरदुरे चेहरे वाला यह अभिनेता निर्माता-निर्देशक की पहली पसंद बनता जा रहा है। ब्लैक फ्राइडे, गैंग्स ऑफ वासेपुर, तलाश, बदलापुर, बजरंगी भाईजान के बाद अब सभी की निगाहें उनकी आने वाली फिल्म मांझी- द माउंटेनमैन पर टिकी हुई हैं।
मन की व्यथा लिखी है पत्र मेंः  शांता कुमार

मन की व्यथा लिखी है पत्र मेंः शांता कुमार

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और हिमाचल प्रदेश से भाजपा सांसद शांता कुमार के फेसबुक पर डाले गए पत्र से भाजपा के अंदर खलबली मच गई है। यह पत्र पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को लिखा गया है। पत्र में शांता कुमार ने लिखा, ‘ घोटालों को लेकर खबरों से पार्टी का सिर झुक गया है।’ इस बवाल से संबंधित कुछ पहलुओं पर शांता कुमार ने अपने दिल्ली स्थित निवास पर बातचीत की। हालांकि इस बीच उन्हें शांत करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा समेत पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के फोन आते रहे।
'पहल' का कोई गुट नहीं रहा - ज्ञानरंजन

'पहल' का कोई गुट नहीं रहा - ज्ञानरंजन

आजादी के बाद हिंदी साहित्य में जिन पत्रिकाओं ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई उनमें 'पहल' का नाम उल्लेखनीय है। यह पत्रिका अपने वैचारिक तेवर और प्रतिबद्धता के लिए विशेष रूप से जानी जाती है। हिंदी की इस चर्चित पत्रिका ने प्रकाशन के चालीस साल पूरे कर लिए हैं। इस पत्रिका ने देश के चार दशकों के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन और इतिहास को भी समेटा है। हाल ही में इसका सौवां अंक आया। इस मौके पर जबलपुर में एक समारोह भी आयोजित किया गया।
नेपाल में हिंदू राष्ट्र को लेकर बहस तेज: प्रचंड

नेपाल में हिंदू राष्ट्र को लेकर बहस तेज: प्रचंड

हम नेपाल को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाना चाहते। हमारी पूरी कोशिश है कि यह धर्मनिरपेक्ष देश बना रहे। हालांकि नेपाली कांग्रेस सहित कुछ अन्य पार्टियां हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए जोर लगाए हुए हैं।
बच्चों पर अच्छी फिल्म बनाने की ख्वाहिश

बच्चों पर अच्छी फिल्म बनाने की ख्वाहिश

आरडी बर्मन पर पंचम अनमिक्सड : मुझे चलते जाना है नाम से वृत्तचित्र के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त ब्रह्मानंद एस सिंह का मन संगीत में रमता है। अभी वह प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह पर कागज की कश्ती नाम से फिल्म बना रहे हैं। बाल मजदूरों पर भी वह एक संवेदनशील फिल्म झलकी बना चुके हैं।
नहीं चाहिए ऐसे पैसे जो संगीत का अपमान कर कमाए गए हों- मिलन सिंह

नहीं चाहिए ऐसे पैसे जो संगीत का अपमान कर कमाए गए हों- मिलन सिंह

नब्बे के दशक में जब गायिका मिलन सिंह सिल्वर स्क्रीन पर आईं तो लोग इसी पसोपेश में रहते थे कि वह महिला हैं या पुरुष। वह दोनों आवाजों में गाया करती थीं। तब उनके गीत युवाओं की जुबान पर रहते । खासकर ‘ अक्ख दे इशारे नाल गल कर गई कुड़ी पटोले वरगी ’ और ‘हाणियां तू कर लै प्यार की जिना तेरा जी करदा ’। इन गीतों की वजह से लोग उन्हें पंजाबी समझते लेकिन मिलन सिंह उत्तर प्रदेश में इटावा के एक गांव की रहने वाली हैं और ठाकुर परिवार में जन्मीं हैं। 32 सुपरहिट एलबम देने वाली मिलन सिंह ने हाल ही में संगीत की दुनिया में पुनः वापसी की है। पेश है उनके बातचीत के कुछ अंश-
परियोजनाओं में देरी से होती है किरकिरी

परियोजनाओं में देरी से होती है किरकिरी

देश में बुलेट ट्रेन चलेगी, स्टेशनों का कायाकल्प होगा, रेलगाडिय़ा समय से चलेगी जैसे अनेक सपने पाले देश का आम नागरिक नरेंद्र मोदी की सरकार से उम्मीद पाले है। सरकार का एक साल पूरा हो गया। उम्मीदों की रेल का सपना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। यात्रियों की बढ़ती संख्या, कंफर्म टिकट को लेकर मारामारी ने आम आदमी के लिए संकट खड़ा कर दिया है। रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा से भारतीय रेल से जुड़े तमाम पहलुओं पर आउटलुक के विशेष संवाददाता ने विस्तार से बात की। पेश है प्रमुख अंश-
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