एक फरवरी को पेश होने वाला बजट भरोसा बढ़ाएगा या पिछले साल की तरह हवाई आंकड़ों की कलाबाजी साबित होगा, यही देखना है। देशहित में यही है कि देश में हर मामले में भरोसा बहाली के लिए कदम बढ़ें
अगर संविधान पर ढंग से अमल होता तो सबको समान शिक्षा मिलती और गैर-बराबरी नहीं रहती, लेकिन सरकारों ने इसकी अवहेलना की, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ न केवल भटकाव बल्कि छलावा भी
संविधान की रक्षा और मौलिक अधिकारों के लिए लोकतंत्र के भविष्य से सरोकार रखने वाले हर शख्स को सतत सचेत रहना होगा, पहले भी और आज भी हालात इसकी गवाही देते हैं
संवेदनशील मामलों में मीडिया को रिपोर्टिंग से रोकने और सरकार से बंद लिफाफे में जवाब हासिल करने के बढ़ते चलन ने खुली अदालत के सिद्घांत को बेमानी बनाया, आरटीआइ के तहत सूचनाओं पर भी कई बंदिशें
भारत नं.1 पर तो आज है विश्व क्रिकेट में, लेकिन वहां कायम तभी रह सकेगा, जब घरेलू यानी रणजी और दलीप ट्रॉफी प्रतियोगिताओं की साज-संभाल होगी, दर्शक आने पर ही खिलाड़ी भी उत्साहित होंगे
नरेंद्र मोदी की सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों तक की परवाह नहीं करती है। ऐसा पहली बार दिख रहा है कि लोकतंत्र की मूल भावना पर ही चोट की जा रही है