ऐसा प्रचंड संकट आजादी के बाद से नहीं आया था, अब तो मोदी समर्थक भी मानने लगे हैं कि महामारी में सरकार का रवैया सारे दायित्व से हाथ झाड़ लेने का रहा है
केंद्र और राज्य सुप्रीम कोर्ट को यह समझाने में नाकाम रहे कि मराठा वर्ग को आरक्षण की जरूरत क्यों है
एसआइटी की रिपोर्ट हाइकोर्ट में खारिज होने के बाद पार्टी के नेताओं ने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला
ग्राम पंचायत और जिला परिषद चुनावों में भाजपा के लिए खतरे की घंटी, विपक्षी दलों को मिली संजीवनी
प्रधानमंत्री कोविड संकट से देश को बाहर निकालने के प्रति बेहद संजीदा हैं, जैसे वे हर संकट में रहते हैं
खांसी, बुखार और सांस में तकलीफ से लोग दम तोड़ रहे, लेकिन जांच के अभाव में ‘कोरोना से मौत’ में उनकी गणना नहीं
देश में संस्थाओं और आंदोलनों का इतिहास कमोबेश एक जैसा है, बेहद नेक इरादों से शुरू होकर भी गहरे गर्त में फंस जाना मानो नियति है
भारत में महामारी की दूसरी लहर ने कैसा विध्वंस मचाया है। सरकार को वैक्सीन का निर्यात रोकना पड़ा और ऑक्सीजन तथा वेंटिलेटर का आयात करना पड़ा।
इस संकट में सरकार और अधिकारियों का स्याह चेहरा नजर आया, जो बेहद निष्ठुर और संवेदनशून्य है
कोरोना से मौत के बीच दिल्ली में सभी निर्माण कार्यों पर रोक, लेकिन प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट में तीनों शिफ्ट में काम जारी
ग्लैमर जगत की हलचल
‘‘ईद का कमिटमेंट था, ईद पर ही आएंगे, क्योंकि एक बार जो मैंने ...’’
सरकार अभी तक इलाज का ठोस प्रोटोकॉल नहीं बना पाई, जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की बयानबाजी से बढ़ा भ्रम
चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय नेता ताकतवर होकर उभरे, जो केंद्र को हर मायने में चुनौती देने को तैयार
भगवान ने कहा था, “शीला लौट आ सकती है... लेकिन मेरे लिए वक्त जीवन में आगे बढ़ने का था”
इस महामारी ने जरूर हमें दुबक जाने पर मजबूर किया है, लेकिन साथ ही इसने हमारे सामने नेताओं की असलियत भी उजागर कर दी है।
सियासी दुनिया की हलचल
इलाहाबाद की माटी और हवा का असर है कि यहां के बालक तक डरते नहीं, बल्कि अक्सर घुस के तमाशा देखने में विश्वास करते हैं। इसीलिए सब गर्व से कहते हैं कि हम इलाहाबादी हैं।
चर्चा में रहे जो
पिछले अंक पर आईं प्रतिक्रियाएं