दिल्ली में लोगों को मेरी संगठन यात्रा के बारे में पता नहीं, संगठन ने मुझे जिस ढांचे में ढाला, उसमें तुलसी की तरह भाषण देने की न तो मुझसे अपेक्षा थी और न मैं करती थी
यह वार्षिक विशेषांक कुछ नया सोचने को मजबूर करेगा। प्रतिष्ठित साहित्यकारों के आलेख और कविताएं राष्ट्र और समाज निर्माण के लिए पाठकों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेंगी, जो आज के समय की महती जरूरत है
जो राष्ट्रीय आंदोलन में ही नहीं, (देश) विभाजन में क्या भूमिका निभा रहे थे उसे भुलाकर गांधी को विभाजन, से लेकर हर समस्या ही नहीं, मुल्क के स्वभाव से ‘मर्दानगी’ गायब करने वाला बताने की मुहिम चला रहे हैं