हाल के वर्षों में हिरासत में मौतों का सिलसिला उसी तरह बढ़ता जा रहा है, जैसे लिंचिंग की वारदातें! मगर सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगती, कानून बनाने और पुलिस सुधार की सिफारिशें और अदालती आदेश महज गर्द फांकने को अभिशप्त
चुने हुए प्रतिनिधियों का सत्ता और राजनैतिक लाभ के लिए पालाबदल अब लोकतंत्र और जनता के साथ विश्वासघात की हदें लांघने लगा है। इसकी रोकथाम के लिए पुख्ता कानूनी उपाय जरूरी