मौजूदा दौर में देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन, आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने आर्थिक स्थिति, ऋण संकट, ऑटोमोबाइल क्षेत्र में गिरावट के लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। बीएमएस एनडीए की पहली वाजपेयी सरकार का भी कटु आलोचक रहा है। बीएमएस के अध्यक्ष साजी नारायणन ने अर्थव्यवस्था, मंदी, श्रम कानूनों जैसे मुद्दों पर हरवीर सिंह के साथ अपनी राय साझा की। मुख्य अंशः
अर्थव्यवस्था के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के प्रमुख सेक्टर ढहती मांग से खस्ताहाल, यह सामान्य चक्र का मामला नहीं है, बल्कि ढांचा ही दरकने लगा, सरकारी कोशिशें ऊंट के मुंह में जीरे की तरह
अर्थव्यवस्था की पहली चोट तो परंपरागत उद्योगों और छोटी-मझोली कंपनियों पर ही पड़ी। अब जब बड़े संगठित क्षेत्र भी मांग की कमी से बदहाल हैं तो छोटी कंपनियों पर मार कई गुना बढ़ गई है। उद्यमी घबराए हुए हैं। वे कॉस्ट कटिंग से लेकर उत्पादन घटाने तक, सारे उपाय आजमा रहे हैं। नतीजा, लोगों की नौकरियां जा रही हैं। जीडीपी में 29 फीसदी और निर्यात में 40 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले लघु, छोटे और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) की स्थिति तो नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद से ही बिगड़ने लगी थी, मांग में गिरावट से जैसे उनकी रीढ़ ही टूट गई है। त्योहारी सीजन में 35-40 फीसदी बिक्री की उम्मीद होती है लेकिन जिस तेजी से लोग नौकरी-जुदा हो रहे हैं, उससे त्योहार भी फीका गुजरने का डर है।
लगातार पांचवीं तिमाही में जीडीपी की दर के गोता लगाने से आखिरकार मोदी सरकार भी मानने पर मजबूर हुई कि आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ी है। हालांकि सरकार अभी भी इसे चक्रीय गिरावट ही मान रही है जबकि कई विशेषज्ञ इसे गंभीर ढांचागत समस्या बता रहे हैं। ऐसे में यह जानना अहम है कि विशेषज्ञ अर्थव्यवस्थाग की हालत और उसे उबारने के सरकारी प्रयासों के बारे में क्या सोचते हैं। आउटलुक ने देश के चार जाने-माने अर्थशास्त्रियों-सेंटर फॉर पॉलिसी अल्टरनेटिव के चेयरमैन और 1998 में वित्त मंत्री के सलाहकार रह चुके मोहन गुरुस्वामी, कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन डॉ. टी. हक, क्रिसिल के चीफ इकोनॉमिस्ट डी.के.जोशी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस ऐंड पॉलिसी के प्रोफेसर एन.आर. भानुमूर्ति की राय जानने की कोशिश की…
जम्मू-कश्मीर में लोगों की अभिव्यक्ति पर पहरा बिठा देने के खिलाफ व्यवस्था के भीतर से उठी इसे इकलौती आवाज कह सकते हैं। दादर नगर हवेली में कार्यरत दानिक्स काडर के 2012 बैच के आइएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने कश्मीर के हालात पर घुटन महसूस करने की वजह से 21 अगस्त को आइएएस की नौकरी से इस्तीफा देकर नई सुर्खियां हासिल कर लीं। इसके पहले अपने गृह प्रदेश केरल में बाढ़ पीड़ितों की मदद करने के अपने निजी प्रयास से भी वे सुर्खियों में आ चुके हैं। तो, कन्नन के मौजूदा फैसले की वजह, काम के दौरान उन्हें किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और आगे वे क्या रास्ता अपनाएंगे, इन सब मुद्दों पर एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव ने उनसे विस्तृत बातचीत की। प्रमुख अंशः