पहले भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित इस्राइल यात्रा 1992 में शुरू हुई लंबी प्रक्रिया की तार्किक परिणति है, लेकिन ऐसे वक्त में हो रही है जब थोड़ा संतुलन साधने की जरूरत है।
करदाताओं के विरोध को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने नए आयकर रिटर्न फार्म जारी किए हैं। इनमें विदेश यात्राओं और निष्क्रिय बैंक खातों की जानकारी देने के विवादास्पद प्रावधानों को हटा दिया है। आयकर रिटर्न अब 31 अगस्त तक भरा जा सकेगा।
किसी भी दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया चीन यात्रा सफल कही जाएगी। इसमें भारतीय इनफ्रॉस्टक्चर क्षेत्र में 10 अरब डॉलर के चीनी निवेश 22 अरब डॉलर के व्यापार समझौतों सहित कई समझौते किए गए।
प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं पर आए खर्च से जुड़ी जानकारी उजागर नहीं किए जाने के बावजूद केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा गठित समिति ने सभी मंत्रालयों को इस तरह की जानकारियां उजागर करने और सक्रिय रुप से अपडेट करने निर्देश दिए हैं।
पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत दौरे पर थे तो भारतीय पर्यटकों के लिए कुछ अच्छी खबरें भी लाए थे। मसलन सिक्किम के नाथूला से होते हुए कैलाश-मानसरोवर तक पहुंचने वाले मार्ग को खोलने के लिए चीन सहमत हो गया।
उत्तर कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र प्रमुख बान की मून को एक औद्योगिक जोन की यात्रा संबंधी दिए गए निमंत्रण को बुधवार को रद्द कर दिया है। बान ने अचानक उठाए गए इस कदम को बहुत खेदजनक करार दिया है।
चीन और दक्षिण कोरिया में दिए नरेंद्र मोदी के उस बयान की तीखी आलोचना हो रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले लोगों को भारत में पैदा होने पर शर्मिंदगी होती थी लेकिन अब गर्व है।
क्या बिना मीट परोसे आप किसी को सिर्फ मीट मसाला खिला सकते हैं? कूटनीतिक और राजनयिक समाचार कथाओं के संदर्भ में भारतीय मीडिया अक्सर यही करता है। वह मसाला चखाने के चक्कर में मीट परोसना भूल जाता है। विदेश नीति और राजनय से संबंधित घटनाक्रम अक्सर आम जनजीवन से इतने दूर और ओट में होते हैं कि आम दर्शक अमूमन मसाले को ही मीट समझने की भूल कर बैठता है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा की राजनयिक कथा में मंगोलिया दौरे की उपकथा की अहमियत भारतीय मीडिया की नजरों से ओझल रही और यह अहम उपकथा आम भारतीय दर्शक या पाठक की प्लेट में परोसी ही नहीं गई।