एक दौर में तमाम महापुरुष और नेता जाति उन्मूलन की बात करते थे आज देश की समूची राजनीति ही जातियों को गिनने की धुरी पर आकर टिक गई है, बिहार की जातिवार गणना के आंकड़े सामने आने के बाद जो हलचल मची है वह देश के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है, खासकर पांच राज्यों के चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव में इसके अक्स दिखने की संभावना
हर पार्टी उसी अनुपात में हर जाति की नुमाइंदगी आश्वस्त करे जिस अनुपात में उसकी संख्या है। अगर हर दल में ऐसा करने का जज्बा दिखता है तो बिहार का जाति सर्वेक्षण देश की सियासत में मील का पत्थर साबित हो सकता है