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मैगज़ीन डिटेल

पत्थरबाज अब बंदूक उठाने को तैयार

दक्षिण कश्मीर के हालात 1991 जैसे पर इस बार नौजवान आमने-सामने लडऩे की तैयारी में

वादों की जवाबदेही की बारी

अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं के बूते गरीबों के दिलों पर सियासी फतेह का हाईवे बनाने में सफल दिख रहे प्रधानमंत्री के लिए बेरोजगारों की बढ़ती फौज और किसानों की घटती आय बड़ी चुनौती

जो तीन साल में किया, वो बिलकुल सही

हमें ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए कि कितने रोजगार पैदा हो रहे हैं, इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है। कई मोर्चों पर काम की दरकार

किसानों की दोगुनी आय के लिए बहुत कुछ करना बाकी

आवश्यक सुधारों वाली नीति के साथ ही देश में सही तंत्र विकसित करना जरूरी, इससे न सिर्फ कृषि बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था में भी मजबूती आएगी, कृषि के विकास के लिए अलग-अलग तरीके अपनाने होंगे

बढ़ता जन समर्थन कामयाबी का सबूत

मोदी सरकार की कार्यप्रणाली से पूरे देश में मजबूत हुई भाजपा की पकड़

जवाबदेही पर ‘जुमलों’ की पॉलिश

मोदी सरकार के तीन साल धर्मनिरपेक्ष भारत की मूल अवधारणा पर साबित हुए भारी चोट

टेस्ट क्रिकेट से दूर होता रोमांच

टी-20 के दौर में परंपरागत स्वरूप पर मंडरा रहे हैं खतरे के बादल, मैदान में कम हो रहे हैं दर्शक

जोगी हम तो लुट गए तेरे प्यार में

जानिए ऐसे गीतकार के बारे में जो संगीतकार भी था और कई भाषाओं का ज्ञाता होने के साथ प्रखर वक्ता भी

कितनी जान फूंक पाएगा एजेंडा राहुल

संगठन में भारी फेरबदल के जरिए 'युवा खून’ प्रवाहित करने की कोशिश क्या राहुल के अध्यक्ष बनाए जाने की पूर्व-पीठिका है?

न साथ भा रहा, न सूझ रही राह

करारी हार के बाद समाजवादी पार्टी ने नहीं लिया सबक, फिर उभरीं अखिलेश-शिवपाल की रंजिशें

सूजा की अजीब दास्तान

व‌िद्रोही और व‌िवादास्पद कलाकार फ्रांस‌िस न्यूटन सूजा न‌िर्व‌िवाद रूप से जीन‌ियस थे

सन सत्तावन की महान देशज संवेदना

उपनिवेशवादी साम्राज्यवाद के खिलाफ 1857 की बगावत बेमिसाल ही नहीं, एक नए भारत की महती भावना का भी इजहार थी, आज हम क्या अपने पुरखों की भावना पर खरे उतर रहे हैं?

'‘सिपाही-राज’ में दिल्ली के चार महीने

अंग्रेजों से दिल्ली को छुड़ाने के बाद बादशाह और सिपाहियों के बीच जनतांत्रिक सिद्धांतों पर गढ़ा गया था वह संविधान, जो आजादी की पहली जंग की असली भावना का गवाह बना

आजादी की पहली लड़ाई का भाईचारा

देश में विभिन्न धर्मों और जातियों के बीच अनोखे भाईचारे का संकल्प 1857 में लिया गया, क्या यह विचार करना वक्त की मांग नहीं है कि तब से आज कहां आ गए हम?

चीन-अमेरिका के दोगुटे से भारत की दुविधा बढ़ी

दुनिया का दादा अब सिर्फ अमेरिका नहीं रहा, चीन का दबदबा एशिया के पार भी अपनी धमक दिखा रहा है। इस नए भू-राजनैतिक परिदृश्य में भारत के लिए क्या हैं संभावनाएं और आशंकाएं?

व‌िश्वः 1857 की अनुगूंज

1857 की क्रांति हुई तो भारत में लेकिन इसकी चर्चा यूरोपीय समाचार पत्रों-पत्रिकाओं के साथ साहित्य में भी हुई

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