इस फैसले के नतीजे आने वाले दिनों में सामने आएंगे। सैन्य ताकत के बल पर लोगों को मुख्यधारा में शामिल नहीं किया जा सकता, उनके साथ चर्चा और बातचीत व उनकी सहभागिता जरूरी है
अनुच्छेद 370 में आजादी के बाद के दशकों में इतने बदलाव हुए कि उसकी अहमियत महज कश्मीरियों की विशेष पहचान का ही प्रतीक बनकर रह गई थी, अब वह भी खत्म कर दी गई
अनुच्छेद 370 को हटाने के सरकार के फैसले से जम्मू-कश्मीर में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। घाटी की मुख्यधारा के नेताओं को हिरासत में लेने से स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो गई है। राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने के फैसले की वैधानिकता और दूसरे तमाम संवैधानिक पहलुओं पर सिद्धार्थ मिश्रा ने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से बात की। बातचीत के मुख्य अंशः
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद हर तरफ 370 की चर्चा है। इस कदम का सेना के लिहाज से क्या फर्क पड़ेगा और फैसले लेने की प्रक्रिया जैसे मुद्दों पर स्पेशल कॉरेसपोंडेंट मिर्जा आरिफ बेग ने लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सुब्रत साहा से बात की। कुछ अंशः
पाकिस्तान के नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस (अब खैबर पख्तूनखवा) के बारे में भारत में लोग कम ही जानते हैं। 93 फीसदी मुस्लिम आबादी के बावजूद आजादी के समय वहां कांग्रेस सरकार थी। विभाजन के समय दोनों तरफ दंगे हुए, लेकिन फ्रंटियर इससे अछूता रहा। ऐसी ही कुछ रोचक और अहम जानकारियां पूर्व टेक्सटाइल सचिव राघवेंद्र सिंह ने अपनी किताब “इंडियाज लॉस्ट फ्रंटियर- द स्टोरी ऑफ द नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस ऑफ पाकिस्तान” में दी हैं। फ्रंटियर को कैसे पाकिस्तान में शामिल किया गया, इसमें नेहरू, महात्मा गांधी, अब्दुल कयूम जैसे नेताओं की क्या भूमिका थी, इनके बारे में भी बताया गया है। राघवेंद्र संस्कृति मंत्रालय में सचिव और राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक भी रह चुके हैं। किताब में दी नई जानकारी और इसे लिखने के पीछे की कहानी समेत तमाम पहलुओं पर राघवेंद्र सिंह से बात की आउटलुक हिंदी के संपादक हरवीर सिंह ने।