राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक सत्ता क्रम को नियंत्रित करने वाले वर्गों, समूहों, समुदायों और संस्थाओं के इस्तेमाल की भाषा में उनके वर्चस्ववादी पूर्वग्रहों के शब्द-संकेत देखे और व्याख्यायित किए जा सकते हैं। भारत की आजादी के 68 वर्ष बीतने पर हमारे राजनीतिक और सुरक्षा प्रतिष्ठानों के चालू विमर्श में हम ऐसे दो चलताऊ जुमलों की निशानदेही करना चाहेंगे जिनके निहितार्थ हमारी स्वतंत्रता सीमित करने के संदर्भ में गंभीर हैं।
सरकार ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढि़या को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने का फैसला किया है जबकि आयोग के दो अन्य सदस्यों विवेक देबराय और वी. के.सारस्वत को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है।
एक बुजुर्ग पिता पिछले आठ महीनों से रक्षा मंत्रालय, सेना मुख्यालय के चक्कर काट रहा है। जिंदगी भर पूरे दमखम से सत्ता प्रतिष्ठानों से लड़ने-भिड़ने का रसूख रखने वाले सांवलराम यादव ने प्रण किया है कि वह युद्ध में हताहत हुए अपने बेटे को शहीद का दर्जा दिलवाए बिना चैन से नहीं बैठेंगे। मामला सिर्फ एक जवान की मौत का नहीं है। इससे जुड़ा हुआ है, उन सैकड़ों जवानों की मौत का मसला जो सियाचिन से लेकर दुर्गम सीमा पर देश के लिए अत्यंत विषम परिस्थितियों में जान गंवा देते हैं। इन जवानों की मौत को आखिरकार शहीद का दर्जा क्यों नहीं मिलता?
सरकार ने तमिलनाडु औद्योगिक विकास निगम और टयू डेवलपर्स सहित 22 विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) की मंजूरी रद्द कर दी है। इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन में संतोषजनक प्रगति नहीं होने की वजह से मंजूरी रद्द की गई।
इस्लामी देशों में बढ़ते आतंकवाद से चिंतित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यालय में पूर्व खुफिया विभाग प्रमुख आसिफ इब्राहिम को महत्वपूर्ण पद सौंपा है। समझा जाता है कि इब्राहिम की पश्चिम एशियाई देशों एवं अन्य मुस्लिम देशों में अच्छी पकड़ है और पूर्ववर्ती सरकार में आईबी प्रमुख रहते हुए कई कट्टर आतंकवादियों को पकड़वाने में अहम भूमिका निभाई है।
कोयला घोटाला मामले के एक आरोपी और कांग्रेस नेता नवीन जिंदल के औद्योगिक समूह से जुड़े एक व्यक्ति ने विशेष न्यायाधीश से एकाधिक बार संपर्क करने की कथित रूप से कोशिश की जिन्होंने उसे भविष्य में ऐसी हरकत करने के खिलाफ चेतावनी दी।
त्रिपुरा में विवादास्पद अफ्सपा कानून भले ही हट गया है लेकिन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का कहना है कि अगर जम्मू-कश्मीर या देश के किसी राज्य में आंतरिक सुरक्षा के लिए सेना को तैनात रखना है तो अफ्सपा जरूरी है।
दिल्ली के चर्चित मनोज वशिष्ठ एनकाउंटर मामले में यह रहस्य गहराता जा रहा है कि दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने बचाव में गोली चलाई या जान-बूझकर गोली मारी गई। अभी तक पुलिस की ओर से जो कहानी गढ़ी गई है उसके मुताबिक पुलिस वशिष्ठ को गिरफ्तार करने गई थी लेकिन उसने गोली चलाई उसके जवाब में पुलिस को गोली चलानी पड़ी जो कि वशिष्ठ को लगी। कुछ प्रत्यदर्शियों ने भी इस बात की पुष्टि की है। लेकिन सवाल यह है कि वशिष्ठ ने जब गोली चलाई तो सीसीटीवी फुटेज में वह क्यों नहीं दिखाई पड़ रहा है।