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नज़रिया

ग्रीस संकट: भारत कमर कस ले तो अच्छा

ग्रीस संकट: भारत कमर कस ले तो अच्छा

यह कोई लंबे चाकुओं वाली रात (नाईट ऑफ लॉन्ग नाईव्ज) नहीं थी। इस बार यह सबको पता था। यूनान के यूरोजोन से बाहर हो जाने को रोकने के लिए एक समाधान निकाल लिया जाएगा, यह और कुछ नहीं सिर्फ एक भोली भाली सोच थी। जैसे ही यूनान के अनियत मार्क्सवादी वित्त मंत्री यानिस वारूफकिस ने अपना पद छोड़ा तो स्टॉक बाजार और मुद्रा विनीमय केंद्र को समझ में ही नहीं आया कि कैसी प्रतिक्रिया दें, राहत मिलने की या घबराहट या गुस्से और खुशी वाली कि सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है।
ऊर्जा और सुरक्षा की तलाश मोदी को ले गई मध्य एशिया

ऊर्जा और सुरक्षा की तलाश मोदी को ले गई मध्य एशिया

वैसे भारतीय प्रधानमंत्री की कजाखिस्तान यात्रा प्रोटोकॉल के विरूद्ध है क्योंकि मनमोहन सिंह की 2011 की कजाखिस्तान यात्रा के बाद अब कजाख राष्ट्रपति को भारत दौरे पर आना चाहिए था, लेकिन उम्मीद की जाती है है कि मोदी की कजाखिस्तान यात्रा दोनों देशों के बीच सहयोग के कई मुद्दों को गति प्रदान करने में मददगार साबित होगी।
यूनान संकट: भारत और दुनिया के लिए सबक

यूनान संकट: भारत और दुनिया के लिए सबक

जहां तक यूनान के मौजूदा संकट का सवाल है, इससे जुड़े मजाक की भी अपनी-अपनी विचारधाराएं हैं। एक प्रचलित चुटकुले का पूंजीवादी संस्करण इस प्रकार है। डच होने की पहचान यह है कि एक रेस्तरां में एक टेबल पर साथ में खाना खाए लोग मिलकर बिल का भुगतान करते हैं जबकि ग्रीक होने का मतलब है खाना खा लेने और शराब पी लेने के बाद जब सभी उठते हैं तो पता चलता है कि बिल देने के लिए किसी के पास पैसे नहीं हैं। इसी लतीफे का समाजवादी संस्करण यह है कि जिन लोगों ने खाने का आर्डर दिया है उन्हें पता चलता है कि उनका खाना रेस्‍तरां का मालिक खा गया और अब बिल उनको भरना है।
इस्‍लामिक स्‍टेट: आतंक का एक साल

इस्‍लामिक स्‍टेट: आतंक का एक साल

इस्लामिक स्टेट पश्चिम एशिया में फैली अशांति का एक अंग है जहां राज्य विखंडित हो चुके हैं तथा भविष्य में राज्य के स्वरूप को आकार देने और क्षेत्रीय व्यवस्था कायम करने के लिए गैर सरकारी ताकतों के बीच भारी लड़ाई चल रही है। इसने अपनी पहली सालगिरह का जश्‍न तीन महाद्वीपों में नरसंहार कर मनाया है।
नेहरू-नफरत के पीछे दिमाग की सड़न

नेहरू-नफरत के पीछे दिमाग की सड़न

नेहरू की अनेक जीवनियां मौजूद हैं जो गहन शोध के बाद लिखी गई हैं। लेकिन उनके अलावा जनश्रुतियाँ भी हैं। उनकी जो तस्वीर जनमानस में नक्श है, वह अधिकतर अफवाहों से बनाई गई है। आप साधारण जन से बात करें तो उनकी छवि एक आरामतलब,ऐय्याश,धोखेबाज,भाई-भतीजावादी नेता और कमजोर प्रशासक की ही उभरती है।
आत्मा के योग से राजबल के योग तक

आत्मा के योग से राजबल के योग तक

आंगन के पार पूरब में कमरे थे, कमरों के पार दालान। दालान के पार रास्ता था, रास्ते के पार आंवला, कनेर और बेल के पेड़ थे, फिर मेड़ की आड़। आड़ के पार पोखर था जिसके जल में आसमान में उगता गोल और सुर्ख सूरज टलमल करता था। पोखर के पार दादा जी (छोटे बाबा) की कुटी थी जिसमें एक कमरे के ऊपर उजियार कमरा था और नीचे अंधेरा तहखाना। कुटी के पार आमों के बाग थे, बाग के पार दूर तक खेत-सरेह। दूर सरेह के पार बडक़ी नहर की आड़ दिखती थी। लेकिन इस सुदूर विस्तार में हजारों, सैकड़ों या बीसियों तक क्या, इक्का-दुक्का भी समवेत योग नहीं होता था।
प्रफुल्ल बिदवईः जनपक्षधर पत्रकारिता की मिसाल

प्रफुल्ल बिदवईः जनपक्षधर पत्रकारिता की मिसाल

प्रफुल्ल बिदवई विलक्षण प्रतिभा के धनी पत्रकार, प्रवक्ता, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता थे। उनका अकस्मात हमारे बीच से चले जाना जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और शांति आंदोलनों के लिए एक बड़ा झटका है। आज के विपरीत समय में अपनी बेबाक शैली, सुव्यवस्थित विश्लेषण और दुस्साहस के स्तर तक जोखिम उठाने की क्षमता के चलते वे अनेक युवा और आदर्शवादी पत्रकारों के प्रेरणास्रोत रहे। उनकी वैज्ञानिक और संपूर्ण दृष्टि तथा ऐतिहासिक बोध, उनकी विश्लेषण क्षमता का मूल मंत्र रहा। इसी ने उन्हें हमेशा खास बनाए रखा और जीवनभर उनकी लेखनी की चमक यूं ही बनी रही।
आपातकाल की बरसी: दु:स्वप्न से ऐन पहले

आपातकाल की बरसी: दु:स्वप्न से ऐन पहले

वर्ष 1975 की 25 जून को इंदिरा गांधी सरकार ने आंतरिक आपातकाल की घोषणा की और भारतीय राजनीति के इस काले अध्याय से जुड़ी घटनाओं को तब अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्‍सप्रेस की एमसीडी बीट कवर करने वाली पत्रकार कूमी कपूर ने किताब की शक्‍ल दी है। यहां हम इस पुस्तक के कुछ अंशों को पाठकों के सामने ला रहे हैं जिनमें आपातकाल से ठीक पहले की घटनाओं का जिक्र है।
सेवा की जीवंत मिसाल थीं सिस्टर निर्मला

सेवा की जीवंत मिसाल थीं सिस्टर निर्मला

नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा के बाद मिशनरीज आफ चैरिटी का काम-काज संभालने वाली सिस्टर निर्मला जोशी का पूरा जीवन गरीबों और समाज के पिछड़े तबके के लोगों के उत्थान के प्रति ही समर्पित रहा। प्रचार और सुर्खियों से कोसों दूर रहने वाली सिस्टर निर्मला में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सच के साथ खड़े रहने का साहस था। उन्होंने कभी किसी गलत आरोप या अफवाह के सामने सिर नहीं झुकाया। बातचीत में तो इतनी विनम्र कि एकबार उनसे मुलाकात करने वाला उनका मुरीद बन जाता था।
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