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मैगज़ीन डिटेल

पुस्तक समीक्षा: केंद्र में स्त्री, परिधि पर कई सवाल

यह अनायास नहीं कि पिछली पीढ़ी नीना के विरुद्ध है और नई पीढ़ी नीना को बेहतर ढंग से समझती है, उसके साथ खड़ी होती है

बिहार : खतरे में एक और धरोहर

फ्लाइओवर बनाने के लिए मशहूर खुदा बख्श लाइब्रेरी के कर्जन रीडिंग रूम को तोड़ने का प्रस्ताव

महाराष्ट्र : देशमुख के बहाने निशाना

पूर्व गृहमंत्री के खिलाफ सीबीआइ जांच से जो भी निकले मगर असली निशाना तो शायद मराठा क्षत्रप और अघाड़ी सरकार

छत्तीसगढ़: फिर लाल हुई माटी

कई दशक से जारी हिंसा के खात्मे के लिए सरकारों के पास पुख्ता योजना का अभाव, सिर्फ घटनाओं के बाद सक्रियता और फिर सुस्ती का आलम

पंजाब: नशे का नया अफसाना

केंद्रीय गृह मंत्रालय का सरहदी जिलों में नशा देकर खेत मजदूरों को बंधुआ बनाने का आरोप मगर पंजाब सरकार का दावा कि यह निराधार

उत्तर प्रदेश: ‘माफिया’ वापसी की सियासत

मुख्तार अंसारी के बाद अब अतीक अहमद को गुजरात की जेल से प्रदेश लाने की कवायद में योगी सरकार

वन्यजीव/बाघ संरक्षण: बाघ प्रदेश में मौत का साया

राज्य में तीन साल में करीब 27 फीसदी बाघों का शिकार हुआ। लेकिन प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) आलोक कुमार के मुताबिक, बाघों की कुल मौतों में 90 फीसदी सामान्य है

उत्तराखंड: फैसले पलटू तीरथ

नए मुख्यमंत्री ने चुनावी वर्ष में पूर्व मुख्यमंत्री के कई फैसले बदलने का शुरू किया सिलसिला

आवरण कथा/परिचर्चा: “दलित हर देश और समाज में हैं”

भारतीय विद्वान डॉ. सूरज येंग्ड़े और उनके मेंटॉर अफ्रीकी-अमेरिकी दार्शनिक और बौद्धिक प्रो. कॉर्नेल वेस्ट एक लंबी दलित-अश्वेत एकजुटता की परंपरा से आते हैं। यहां दोनों ने भावी आजादी, इसके संभावित आकार, ढांचे और रंग पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। आउटलुक के सुनील मेनन के साथ वीडियो चर्चा में बी.आर. आंबेडकर और डू बॉयस जैसे राजनीतिक विचारकों के संबंधों के परिप्रेक्ष्य में हमने उन्हें अश्वेत जीवन के महत्व (ब्लैक लाइफ मैटर्स) और दलित जीवन के महत्व पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया था। चर्चा के मुख्य अंश डॉ. येंग्ड़े और प्रो. वेस्ट के बीच वार्ता के रूप में प्रस्तुत हैं -

आवरण कथा: दलित दौर की दमदार धमक

जाति व्यवस्था की जकड़ और पाबंदियों के बावजूद दलितों ने अपने दमखम का परिचय हर क्षेत्र में दिया

आवरण कथा/राजनीति: नेताओं की खो गई अपील

दलित पार्टियों और नेताओं का आधार सिमटा मगर नई शख्सियतों के उभार और वोटों के लिए हर पार्टी की जद्दोजहद से नए दलित दौर की किरण झिमिलाई

बॉलीवुड: डरना मना है, हंसना नहीं!

कोविड ने सिनेमाघरों को भूत बंगला जैसा बनाया तो फिल्मोद्योग ने दर्शकों को खींचने का हॉरर-कॉमेडी का अनोखा मिश्रण तैयार किया

सप्‍तरंग

ग्लैमर जगत की हलचल

जनादेश’21/पश्चिम बंगाल : सत्ता के लिए बेखौफ हिंसा

प्रदेश में जैसे-जैसे चुनावी मुकाबला कड़ा हो रहा है, हिंसा बढ़ती जा रही है; अब तक कम से कम 10 लोगों की मौत का गवाह बना यह चुनाव

आवरण कथा/इंटरव्यू/चंद्रशेखर आजाद : ‘ईडी, सीबीआइ से जो न डरे उसे कमान दें मायावती’

दलित नेतृत्व में खालीपन और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर भीम आर्मी प्रमुख तथा आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव से विस्तार से बातचीत की है। प्रमुख अंश:

आवरण कथा/इंटरव्यू/शरणकुमार लिंबाले: “दलित साहित्य मानवाधिकारों का आंदोलन”

मराठी दलित साहित्य में दया पवार, नामदेव ढसाल और लक्ष्मण गायकवाड़ की तरह शरणकुमार लिंबाले राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। पिछले दिनों उनकी रचना सनातन को प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा हुई, जिसमें 15 लाख रुपये की राशि मिलती है। वे यह सम्मान पाने वाले पहले दलित लेखक हैं। भारतीय भाषाओं के साहित्य जगत में इस निर्णय का भरपूर स्वागत हुआ है। लिंबाले की आत्मकथा अक्करमाशी हिंदी में काफी चर्चित रही है। उनसे अरविंद कुमार ने तमाम मुद्दों पर विस्तृत बातचीत की। प्रमुख अंश:

पुस्तक समीक्षा: दृष्टिहीनों की दुनिया का बेहतरीन चित्रण

इस पुस्तक के अधिकतर पात्र दृष्टिहीन हैं, जिनके जरिए दृष्टिहीनों की दुनिया का बेहतरीन चित्रण किया गया है।

पुस्तक समीक्षा: लौकिक और आत्मिक के बीच का पल

‘स्माइल प्लीज’ ये सब सवाल खड़े करता है और पाठक को कहानी के प्रति एक निजी दर्शन बनाने पर मजबूर करता है।

कोविड-19: वायरस फिर पड़ा भारी

कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या का रोजाना बन रहा रिकॉर्ड, वैक्सीन की कमी से लड़ाई हुई मुश्किल

संपादक की कलम से: खुदमुख्तार दलित

नायक-पूजा प्रधान देश में यह तो लाजिमी है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर की वर्षगांठ इस साल भी 14 अप्रैल को जोशोखरोश से मनी। सार्वजनिक छुट्टी रखी गई और संविधान निर्माता को श्रद्धांजलि अर्पित की गई, जो देश के सबसे चर्चित दलित नायक हैं और उन्होंने देश में हजारों वर्ष से कायम जाति व्यवस्था को मिटाना चाहा, जिसने समाज के एक बड़े तबके को वंचित और लाचार बना रखा है।

संपादक के नाम पत्र

पिछले अंक पर आईं प्रतिक्रियाएं

अंदरखाने

न टेस्ट है, न अस्पताल में बेड, न वेंटिलेटर, वैक्सीन भी नहीं, बस उत्सव का ढोंग है

खबर-चक्र

चर्चा में रहे जो

शहरनामा/हाजीपुर

कहा जाता है कि जब भगवान राम सीता स्वयंवर के लिए जनकपुर जा रहे थे तो उनके पांव हाजीपुर की धरती पर भी पड़े

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