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मैगज़ीन डिटेल

“महिलाओं के बारे में लिखने से डरता हूं”

काशी यानी बनारस और बनारस के काशीनाथ सिंह उन साठोत्तरी साहित्यकारों में शुमार हैं, जिनकी रचनाओं में गांव सांस लेता है, तो आम जीवन के पात्र जिंदगी की वास्तविकता के साथ नजर आते हैं। आम जन-जीवन से प्रेरित उनके पात्र गरियाते, बेबाक, गप्पी और हंसोड़ हैं। कहानियों, संस्मरण के अलावा ‘काशी का अस्सी’, ‘रेहन पर रग्घू’ और ‘उपसंहार’ उनके चर्चित उपन्यास हैं। काशीनाथ सिंह से नाज़ ख़ान की बातचीत के अंशः

इसकी टोपी उसके सिर

सरकार को चार साल से ज्यादा समय बीत चुका है और बैंकिंग, खासतौर से सरकारी बैंकों की स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही है, एनपीए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रहे हैं, ऐसे में इसकी टोपी उसके सिर वाला फार्मूला संकट का हल नहीं है, कुछ नया सोचिये

मिशन 2019 महबूबा अलविदा

भाजपा के पीडीपी से मतभेदों के अलावा गठबंधन तोड़ने की सियासी वजहें और भी बड़ी, केंद्र के लिए अब कश्मीर एक नई चुनौती

जम्मू में उभरे गुस्से से बदला पैंतरा

जम्मू और लद्दाख के साथ भारी मोहभंग और देश में बन रही प्रतिकूल धारणा ने भाजपा को रणनीति बदलने पर मजबूर किया

“कश्मीर का समाधान होकर रहेगा”

भाजपा के पीडीपी से नाता तोड़ने और महबूबा मुफ्ती सरकार को अलविदा कहने के बाद कश्मीर में केंद्रीय गृह मंत्रालय की भूमिका बहुत बढ़ गई है। भाजपा के कद्दावर नेता और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की मानें तो रमजान के महीने में पीडीपी की सलाह पर सीजफायर नहीं, बल्कि कार्रवाई सस्पेंड की गई थी। लेकिन आतंकवादियों की हरकतें कम नहीं हुईं तो गृह मंत्री अब कोई नरमी न बरतने का संकेत देते हैं। उनसे कश्मीर समेत देश में नक्सलवाद, मॉब-लिंचिंग की घटनाओं, 2019 की रणनीति और विपक्ष के गठजोड़ की चुनौती जैसे तमाम मसलों पर आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह ने बात की। गृह मंत्री ने हर सवाल का जवाब विस्तार से दिया। कुछ अंश :

इन दोराहों पर कितनी बार

कश्मीर निर्वाचित सरकार और राज्यपाल शासन के बीच झूलता रहा है, एक नजर चुनावी इतिहास पर

वादी में आगे क्या?

पिछले तीन-चार साल से जारी नीतियों से संकट बढ़ा, लेकिन जरूरी है कि नई राह तलाशी जाए

दिल्ली में चिपको की गूंज

पुनर्विकास के बहाने व्यावसायिक परिसर के लिए हजारों पेड़ों की कटाई से उखड़े लोग

दाखिले बढ़े मगर ना-नुकुर भी बढ़ी

दाखिले के लिए देर से निकल रही लॉटरी, निकली भी तो कई स्कूलों के नाम गायब, कुछ के पते ही गलत

‘जंगलराज’ की बदस्तूर आहट

दुष्कर्म, हत्या के बढ़ते सिलसिले से सुशासन की साख पर बट्टा, कानून-व्यवस्था बनी सिरदर्द, शराबबंदी के बोझ तले दबा पुलिस महकमा

सबको चाहिए मुफ्त बिजली

संकट बढ़ा मगर कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी के रसूखदार नेताओं को भी मिल रही है मुफ्त बिजली

भगवा खेमे में बिखराव से 2019 की राह मुश्किल

प्रदेश की 10 लोकसभा सीटों में से सात पर भाजपा का कब्जा, चार सांसदों ने तेज किए बगावती सुर

नई जुगलबंदी से बदले समीकरण

विजन और नई योजनाओं की बदौलत छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने जीता प्रधानमंत्री का भरोसा, चुनावी साल में पार्टी के भीतर राह हुई आसान

इंग्लैंड टेस्ट भारी तो नहीं!

भारत की तैयारियों पर संशय के बादल, इंग्लैंड की मौजूदा टीम भी अपने क्रिकेट इतिहास में सबसे कमजोर

आरके फिल्म्स राजकपूर के साथ जन्मा और उन्हीं के साथ खत्म हो गया

रणबीर कपूर उन बड़े स्टारों में से एक हैं, जो बॉलीवुड में आमिर-सलमान-शाहरुख जैसी खान तिकड़ी की बादशाहत से बाहर हैं। हालांकि, उनकी आखिरी कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट गईं। मगर, इस 35 वर्षीय अभिनेता को निर्देशक राजकुमार हीरानी की संजय दत्त पर बनी बॉयोपिक संजू से धमाकेदार वापसी की उम्मीद है क्योंकि हीरानी की कोई भी फिल्म पिछले 15 वर्षों में पिटी नहीं है। संजू की रिलीज से महज कुछ दिन पहले गिरिधर झा ने रणबीर कपूर से तमाम मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की। रणबीर ने यह तो बताया ही कि उन्होंने कैसे और क्यों यह भूमिका मंजूर की, यह भी खुलासा किया कि क्यों वे अपने दादा राज कपूर के आरके फिल्म्स को पुनर्जीवित कर उसकी विरासत का लाभ नहीं लेना चाहते हैं। बातचीत के अंश :

फुटबलवा दिल हमार

देशभक्त होने का यह पक्का सबूत है कि फुटबॉल देखो, भारत की हार कभी ना देखनी पड़ेगी

जीएसटी के हाइवे

संविधान में 101वें संशोधन से राजमार्गों पर माल की आवाजाही कितनी आसान हुई? जीएसटी लागू होने के साल भर बाद यह जानने के लिए आउटलुक संवाददाताओं ने की ट्रकों की सवारी

शहरी सच्चाइयों का धड़कता दस्तावेज

शहर और गांव का द्वंद्व न केवल किस्सागोई में परवान चढ़ा है बल्कि कविता में भी नगरबोध, शहरातीबोध के साथ-साथ महानगरीयता हावी रही है

खुदा खैर करे! आपका लाल बीमार न पड़े

बच्चों के इलाज की दशा-दिशा की गोरखपुर के अस्पताल की घटना तो छोटी-सी मिसाल भर, हालात भयावह

एक विलक्षण कवि-चित्रकार

स्पष्टवादी, लाग-लपेट से दूर और स्नेह से भरे स्वामीनाथन के जीवन और कर्म के बीच नहीं थी कोई फांक

सिर्फ विशेषज्ञ नहीं, तरीका बदलें

प्रणालीगत सुधार के बिना सिर्फ विशेषज्ञों के भरोसे बेहतरी का ख्वाब कहीं दिवास्वप्न न साबित हो

इस स्त्री -विमर्श से तो तौबा!

अपनी कलम से, अपनी जुबानी, अपने ही नारों में, अपनी ही देह धर दी तो कौन-सी तोप चला दी

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