राजनैतिक फंडिंग की मोदी सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से असंवैधानिक करार दिया, तो क्या तकरीबन छह साल से जारी योजना से राजनीति के रंगढंग में आए बदलावों को बदला जा सकेगा?, क्या चुनाव निष्पक्ष और परदर्शी हो पाएंगे?, क्या काले धन की पॉलिटिकल इकोनॉमी से मुक्ति मिल पाएगी?
“चुनावों के माध्यम से एक राष्ट्र के जीवन की पड़ताल” करने वाली एस.वाइ. कुरैशी की लिखी किताब इंडियाज एक्सपेरिमेंट विद डेमोक्रेसी का एक अंश, जिसमें बताया गया है कि चुनावी बॉन्ड क्यों पारदर्शी नहीं हैं
मोदी लोकसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे या नहीं, यह आखिरकार जनता के हाथ में है जिसका फैसला अंतिम होता है। यही भारतीय लोकतंत्र के बहुरंगे चुनावों की खूबसूरती है जिसके कारण सबकी निगाहें इस चुनाव पर हैं
कम लोग जानते हैं कि अमीन साहब की मां कुलसुम सायानी हिंदुस्तानी प्रचार सभा से जुड़ी थीं और महात्मा गांधी के निर्देश पर उन्होंने रहबर नाम से पत्रिका निकाली थी।