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मैगज़ीन डिटेल

बाजारवादी नीतियों पर चुप्पी का राज

आर्थिक उदारीकरण और सुधारों की वकालत है गुम, बीच बहस में अब आया आम आदमी

छापे और छिपाने के खेल

चुनाव के दौरान आयकर विभाग की विवादास्पद छापेमारी और पैसे की बढ़ती अहमियत से लोकतंत्र में समान अवसर का सिद्धांत बेमानी बन गया तो पूरी प्रक्रिया ही संदिग्ध हो जाएगी

बड़े बदलाव की मुकम्मल आहट

क्या ये चुनाव बाजारवाद और निजीकरण से वापसी का संदेश लेकर आएंगे, क्या कल्याणकारी राज्य की ओर वापसी के संकेत दिखने लगे?

जनहित में विकल्प परखने का वक्त

इस बार एक अच्छी, जनहितकारी फसल बोने और उसे लहलहाने वाले कदमों की संभावना नजर आ रही है तो इसकी वजह है कि आम आदमी इन चुनावों में खुलकर बोलने और अपने मुद्दों पर जोर दे रहा है

न्यूनतम आय गारंटी लागू करना नामुमकिन नहीं

देश में गरीबों की संख्या 20 करोड़ या लगभग पांच करोड़ परिवार होने की संभावना, इन्हें गरीबी रेखा से ऊपर लाने के लिए 'न्याय' जैसी योजना हो सकती है कारगर, बशर्ते सही तरीके से लागू की जाए

वजूद बचाने की जद्दोजहद

कश्मीर घाटी में संविधान और अपनी विशेष स्वायत्तता बचाए रखने की ही चुनावी जंग, बालाकोट और पुलवामा भी बड़ा मुद्दा

लालू ही चुनावी एजेंडा

राजद अध्यक्ष चुनावी रण से बाहर रहकर भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराने में पूरी तरह सफल

ममता गढ़ में सेंध की आस

पिछले तीन-चार वर्षों में भाजपा के विस्तार से बढ़ा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, मगर तृणमूल को भारी बढ़त

मुद्दे और जाति साधने पर जोर

भाजपा ने एक तरफ पांच मौजूदा सांसदों का टिकट काटा, तो कांग्रेस में भी प्रत्याशी चयन को लेकर विरोधी गुटों में खींचतान

सब दूर बदलाव की आहट

मतदाता मोटे तौर पर मौन, शोर-शराबा भी कम, पार्टियां जाति गणित साधने और मुद्दों को धार देने में मशगूल

जो जीते मुंबई वही किंग

जैसे-जैसे आम चुनाव चरम पर पहुंच रहा है, जमीनी और भावनात्मक मुद्दों में भी गरमी बढ़ती जा रही है, दिलचस्प मुकाबले के आसार

पहले जैसी चिंता तीसरे चरण में भी

उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण के मतदान में कई दिग्गजों का भविष्य दांव पर, राज्य में भाजपा को मिल रही कड़ी टक्कर

परदे पर अय्यारों का राज

जासूस हिंदी फिल्मों के लिए नए नहीं हैं लेकिन अति राष्ट्रवाद के इस दौर में जैसे इनकी बाढ़ आ गई है

बाबा अब हुए बेअसर

जेल की सजा काट रहे डेरों-पंथों के प्रमुखों का रसूख पड़ा फीका, बिखरे अनुयायी तो पार्टियों में समर्थन पाने की होड़ हुई कम

धांसू है यह धंधा यारो!

आम चुनाव दुनिया का सबसे खर्चीला चुनाव होने का रिकॉर्ड बनाने जा रहा है, ऐसे में किसकी चांदी, कहां कारोबार पड़ा फीका

स्लोगन में चुनावी इबारत

नारे सिर्फ एजेंडे और राजनैतिक जोड़तोड़ का ही बयान नहीं करते, बल्कि इनमें लोगों को प्रभावित करने और जनमत तैयार करने का माद्दा भी होता है। कल और आज के नारों में बदलती सियासी तस्वीर भी दिखती है

नारों की नई फेहरिस्त

नारों से बदलती चुनावी बहस

दही खाओ और कुल्लड़ भी

स्वाद की नई श्रंखला में अब प्रकृति के अनुकूल, स्वादिष्ट प्लेटें और चम्मच भी हो रहे शामिल

चुनाव की बेला में युद्ध और राष्ट्रवाद का हल्ला क्यों

इस चुनाव के समय देश में ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि संशय होता है कि यह जन-प्रतिनिधि नहीं, योद्धा की तलाश का अभियान है, दरअसल जनता के सवालों से बचने का बहाना है युद्धोन्मादी-राष्ट्रवाद

नीतियों में आमूल-चूल बदलाव जरूरी

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को तो पूरा यकीन है कि 23 मई के बाद कांग्रेस और गैर-भाजपा दलों की सरकार देश में बनेगी तो बदलेंगी नीतियां। उन्होंने आउटलुक के एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव से ‘न्याय' योजना, किसान बजट और तमाम योजनाओं के बारे में अपनी राय साझा की। मुख्य अंश...

गेम चेंजर होने जा रहा है ‘न्याय’

रायपुर के बाहरी हिस्से में निम्न आय वर्ग की पुनर्वास कॉलोनी में लोगों की आय पर चर्चा और फिर कांग्रेस की ‘न्याय’ योजना पर खासकर महिलाओं के अटपटे सवालों का भी बड़े धीरज और सफाई से जवाब। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की यही खासियत उन्हें बाकियों से अलग करती है। उन्हें पूरा यकीन है कि ‘न्याय’ योजना गेम चेंजर साबित होगी और राज्य की सभी 11 संसदीय सीटें कांग्रेस की झोली में डाल देगी। अपने व्यस्त कार्यक्रमों के दौरान उन्होंने चुनावी रणनीति और सरकार के कामकाज पर आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह और विशेष संवाददाता रवि भोई से बातचीत की। कुछ अंशः

मुद्दा तो मोदी ही हैं

लगातार 15 साल तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे और अब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रमन सिंह का कहना है कि 2019 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के इर्द-गिर्द ही घूम रहा है। मुद्दा मजबूत प्रधानमंत्री या मजबूर प्रधानमंत्री और बेमेल गठबंधन का है। छत्तीसगढ़ में स्थानीय मुद्दे कुछ हावी हो सकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे ही प्रभावी होते हैं और लड़ाई 55 साल बनाम पांच साल की है। आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह और विशेष संवाददाता रवि भोई ने डॉ. रमन सिंह से रायपुर में खास बातचीत की। मुख्य अंशः

विपक्ष के पास मुद्दे नहीं

उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की गिनती राज्य के कद्दावर पिछड़े नेता के रूप में होती है। पार्टी के स्टार प्रचारक बन चुके मौर्य के सामने पिछले लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। प्रदेश में भाजपा की चुनावी रणनीति को लेकर आउटलुक के वरिष्ठ संवाददाता शशिकान्त ने उनसे बातचीत की। प्रमुख अंशः

मुकाबले में सिर्फ कांग्रेस दूसरा कोई नहीं

गुटबंदी की शिकार हरियाणा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव से पहले एकजुट करने के लिए पार्टी आलाकमान ने प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद की अगुआई में हफ्ता भर पहले कांग्रेसियों को एक बस में प्रदेश भर के दौरे पर भेजा। आलाकमान के इस प्रयास से क्या नेता एकजुट हो पाए? नेताओं को एकजुट करने की चुनौती के बीच चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और रणनीति के बारे में आउटलुक के सीनियर असिस्टेंट एडिटर हरीश मानव ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा से बातचीत की। प्रमुख अंश:

सीमा के आर-पार कोरस

कुंवर नारायण की कहानी ‘सीमारेखाएं’ पढ़ें और मंटो की कहानी ‘टोबा टेकसिंह’ याद न आए, ऐसा नहीं हो सकता

जिसका माल उसका मोक्ष

एक अच्छी कविता को समझने की जो बहुत सारी कुंजियां हो सकती हैं, उनमें से एक उनमें निहित विडंबना बोध भी है

रेणु के गांव से आगे

यह उपन्यास स्याहपन की नहीं स्याह परिस्थिति की बात करता है जो आज के दौर की हकीकत है

राजनेता और बुद्धिजीवी

आज के अधिकांश नेताओं की साहित्य या लेखन में न कोई रुचि है न वे स्वयं लिखते-पढ़ते हैं

बदले पुलिसिया तौर-तरीके

इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के युग में लाठी-बंदूक से ज्यादा अहम हुए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ड्रोन

नक्शे में खिंची दोस्ती-दुश्मनी की लकीरें

ड्राइवर की सीट पर बैठा आदमी दिल्ली में है और बगल की सीट पर बैठा आदमी यूपी में। ठीक ऐसा ही हो यह भी जरूरी नहीं क्योंकि अपने यहां ज्यादातर सड़कें ऐसी होती हैं कि उनमें और कच्ची मिट्टी के बीच ठीक ठीक फर्क करना बड़ा मुश्किल होता है

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